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धर्मशाला: दलाईलामा बोले- बौद्ध राष्ट्र था चीन, फिर से बढ़ रही अनुयायियों की संख्या

तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा
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दलाईलामा

तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा ने बौद्ध धर्म की महिमा बताते हुए कहा कि सामान्य तौर पर चीन एक बौद्ध राष्ट्र था। तिब्बत में रहते हुए मैं कई बार चीन गया। मैंने देखा कि वहां बहुत से बौद्ध विहार और मठ थे। इससे सिद्ध होता है कि महात्मा बुद्ध की सत्ता चीन में भी अच्छे से व्याप्त थी। आज भी चीन में बौद्ध धर्म में रुचि दिखाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मैक्लोडगंज में जातक कथाओं पर प्रवचन देते हुए दलाईलामा ने कहा कि चीन में परिवर्तन हो रहे हैं। राजनीति में भी परिवर्तन हो रहे हैं। पढ़े-लिखे और शोध करने वाले चीनी आज भी बता सकते हैं कि भारत में रह रहे तिब्बतियों की स्थिति अच्छी है। यह एक अच्छा संकेत है। आप भी एक से दस और फिर सौ लोगों तक बुद्ध के दर्शन को पहुंचाएं।

दलाईलामा ने कहा कि धर्म एक व्यक्ति का नहीं है। यह सभी लोगों के लिए है। केवल मुख से व्याख्या करने से लाभ नहीं होने वाला। रिंपोछे कहते भी हैं कि दूसरों के चित्त को शुद्ध करने से पहले, स्वयं धर्म का अभ्यास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। हमारा देश भले हमसे छूट गया हो, मगर बौद्ध संस्कृति और दर्शन के संरक्षण के लिए हम सभी ने उचित ध्यान दिया है। धर्मगुरु ने कहा कि दुख को समाप्त करने के लिए हमें अपने अंदर के क्लेश और स्वार्थ चित्त को खत्म करना होगा। शून्यता का अभ्यास करना चाहिए।

हम स्वयं भी रोज जितना अधिक बौद्धि चित्त का अभ्यास करेंगे, उतना ही बेहतर होगा। सुख के लिए हमें परहित के बारे में ज्यादा सोचना होगा। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक तौर पर तिब्बत, मंगोलिया और अन्य देशों में बौद्ध धर्म और दर्शन बहुत अच्छे से फैला है। बीच में कुछ कमी आई। हालांकि इस कमी के बाद फिर से यह पुन: अच्छे से स्थापित हो रहा है। मंगोलिया और तिब्बत में बौद्ध धर्म एक एक बार फिर से तेजी से फल-फूल रहा है।

डेढ़ हजार साल पुरानी परंपरा

दलाईलामा ने कहा कि ल्हासा में अकसर पांच दिवसीय प्रार्थनाओं का आयोजन होता था। प्रार्थनाओं की यह परंपरा करीब डेढ़ हजार साल पुरानी है। प्रार्थनाओं के बाद जातक कथाओं पर प्रवचन दिया जाता था। पिछले कुछ वर्षों से तिब्बत में प्रार्थनाओं का आयोजन थोड़ा मुश्किल हुआ है, मगर बुद्ध की सत्ता को जीवंत रखने के लिए भारत में लोग एक विचारधारा के साथ पूरे जोश के साथ इसे अपनाते रहे हैं। निर्वासन के बावजूद हम सब अपने पूर्व के आचार्यों की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

बुद्ध की सत्ता के लिए पूरे उत्साह से किया कार्य

प्रवचन के दौरान दलाईलामा ने कहा कि बुद्ध की सत्ता के लिए मैंने पूरे उत्साह के साथ कार्य किया है। जहां-जहां लोग बुद्ध के विचारों को सुनना चाहते हैं और किसी कारणवश वहां नहीं पहुंच सके हैं, वहां तक बुद्ध के दर्शन को पहुंचाने के लिए प्रयास कर रहा हूं। यही कारण है कि लोग बौद्ध धर्म को स्वीकार कर रहे हैं। इससे जुड़े मनोविज्ञान में लोग रुचि दिखा रहे हैं।

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