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देशभर में तैयार होने वाली ढींगरी मशरूम अब सेब के गूदे से भी की जा सकेगी तैयार

देशभर में तैयार

देशभर में तैयार होने वाली ढींगरी मशरूम अब सेब के गूदे (बचा हुआ अवशेष) से भी तैयार की जा सकेगी। सेब के अवशेष और भूसे से कल्टीवेशन के बाद तैयार मशरूम की क्वालिटी और वैरायटी पहले से बेहतर होगी। इससे गेहूं पर तैयार की गई ढींगरी मशरूम से उपज भी दो गुना अधिक होगी। मशरूम के लिए भूसे की कमी भी दूर होगी। इसका नौणी विवि के विशेषज्ञों ने सफल प्रशिक्षण कर लिया है। ढींगरी मशरूम में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स और फाइबर्स होते हैं।

यह दिल की बीमारियों के अलावा मोटापा कम करने और डायबिटीज के रोगियों के लिए लाभदायक है। ढींगरी मशरूम हिमाचल समेत देशभर में तैयार की जा रही है। हिमाचल में हरियाणा, पंजाब से गेहूं से भूसा लाया जाता है, लेकिन हिमाचल के किसानों के लिए यह महंगा पड़ता है। अब सेब से जूस निकालने के बाद इसके अवशेष मशरूम उगाने के काम आएंगे। वर्तमान में सेब के अवशेष किसी काम में नहीं आते हैं। सेब प्रोसेसिंग यूनिट के बाहर, सड़कों के किनारे खुले में फेंका जाता है। अब इससे मशरूम बनाने का काम लिया जाएगा। प्रदेश में सेब की अर्थव्यवस्था 5000 करोड़ से अधिक हिमाचल प्रदेश जैसे फल राज्य, जहां का सेब और उससे निर्मित उत्पाद देश भर में मशहूर है। अकेले सेब की अर्थव्यवस्था 5000 करोड़ से अधिक की है और प्रदेश के किसानों की अर्थिकी मजबूत हुई है।

हर वर्ष हजारों टन सेब का जूस निकाला जाता है। रस निकालने के बाद, बचे हुए जैव-अवशेष जिसे पोमेस कहा जाता है, जो कुल सेब के ठोस अवशेषों का लगभग 50 प्रतिशत होता है, व्यर्थ हो जाता है। आमतौर पर इसे कारखाने के आस-पास डंप किया जाता है जो पर्यावरण प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार होता है। दो वर्षो से चल रहा था शोध कार्य सेब के गूदे (पोमेस) का सही इस्तेमाल करने के दिशा में कार्य करते नौणी विवि के बेसिक साइंस विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. निवेदिता शर्मा और पादप रोग विज्ञान विभाग के डॉ. धर्मेश गुप्ता ने मिलकर पोमेस को ढींगरी मशरूम उत्पादन के लिए इस्तेमाल कर उस पर शोध कार्य किया।

‘सेब पर ढींगरी उगाने के लिए पिछले दो वर्षो से अनुसंधान किया गया। विभाग के अनुसंधान में पोषण गुणवत्ता और ओएस्टर मशरूम की प्रति यूनिट उपज के बहुत अच्छे नतीजे आए हैं। 1.5 से 2 गुना ज्यादा उत्पादन हुआ है। किसानों को मिलेगा नए उद्यम स्थापित करने का मार्ग कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि विश्वविद्यालय का प्रयास रहता है कैसे नई नई तकनीक विकसित करें। सेब के पोमेस पर विवि ने काफी कार्य किया है। देश का मशरूम शहर होने के नाते हमें लगा कि पोमेस के खाद्य पदार्थ विकसित करने के साथ-साथ इसका इस्तेमाल मशरूम उत्पादन के लिए भी किया जाए। वर्तमान शोध ने न केवल एक अपशिष्ट की समस्या को अवसर में बदला है, बल्कि किसानों और नए उद्यम स्थापित करने का मार्ग खोला है।

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