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विक्टोरिया पुल को उड़ाने की थी योजना, गदर पार्टी के क्रांतिकारियों में मियां जवाहर सिंह आंदोलन को धार दी

गदर पार्टी के क्रांतिकारियों में मियां जवाहर सिंह एक ऐसा नाम है, जिन्होंने खुद तो आंदोलन को धार दी ही, अपने बेटे बदरी को भी क्रांतिकारी का बसंती चोला पहनाकर स्वतंत्रता संग्राम में उतार दिया। ब्रिटिश हुकूमत व मंडी रियासत के खिलाफ दम आंदोलन का नेतृत्व कर मंडी रियासत के युवा मियां जवाहर सिंह ने क्रांतिवीर होने का परिचय दे दिया था। यह वही वक्त था जब अमेरिका व कनाडा से शुरू गदर आंदोलन की चिंगारी मंडी तक आ पहुंची थी। क्रांतिकारी मियां जवाहर सिंह गदर आंदोलन में शामिल हो गए और मंडी में गदर की संरक्षिका रानी खैरगढ़ी के साथ मिलकर उन्होंने मंडी व आसपास के क्षेत्रों में गदर पार्टी की गतिविधियों को इतना तेज कर दिया कि मंडी रियासत आजादी के दीवानों का गढ़ बन गई।

मियां जवाहर सिंह ने गदर पार्टी को आर्थिक रूप में मजबूत करने के लिए दिल खोलकर आर्थिक सहायता प्रदान की।आज़ादी का अमृत महोत्सव : शहीदे-आज़म भगत सिंह, सुखदेव और भगवती चरण की दोस्ती ने यशपाल के अंदर क्रांति की मशाल जलाई, बंदूक और कलम से लड़ी आज़ादी की लड़ाई.

11915 में गदर पार्टी ने ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेकने के लिए तत्कालीन मंडी के ब्रिटिश सुपरीटेंडेंट व क्रूर सैसन जज एचडब्ल्यू एमर्सन तथा भ्रष्ट वजीर जीवानंद उपाध्याय को मारने, सरकारी खजाने को लूटने, विक्टोरिया पुल को उड़ाने तथा सुकेत व मंडी रियासतों पर कब्जे की योजना बनी। योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए पंजाब के क्रांतिकारियों तक बम व बारूद पहुंचाने की जिम्मेदारी मियां जवाहर सिंह को सौंपी गई। बम सामग्री लेकर क्रांतिकारी निधान सिंह व दिलीप कुमार पंजाब वापस गए तो ब्रिटिश पुलिस के हत्थे चढ़ गए। ब्रिटिश पुलिस की तमाम चौकसी के बावजूद मियां जवाहर सिंह ने और कुछ विस्फोटक गदर पार्टी के अन्य क्रांतिकारियों को उपलब्ध करवाए लेकिन ये क्रांतिकारी भी होशियारपुर में पकड़े गए।

स्पेशल रिपोर्ट : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिमाचल प्रदेश की वीरांगनाओं की वीरता के अनूठे प्रेरक प्रसंग, चाहिए थी आजादी, रण में उतरी ‘आधी आबादी’

बम व विस्फोटक बरामद होने पर गदर पार्टी के क्रांतिकारियों के खिलाफ मुकद्दमे चलाए गए। दिलीप सिंह सरकारी गवाह बन गए। मियां जवाहर सिंह के घर से मिले क्रांतिकारियों के पोस्ट कार्ड तथा साथियों की स्वीकारोक्ति के कारण मियां जवाहर सिंह व उनके बेटे को काले पानी की सजा सुनाई गई। मिया जवाहर सिंह ने 28 वर्ष की जिलावतनी के बाद 1944 में प्राण त्याग दिए। अंग्रेज सरकार ने उनकी अस्थियां उनके बेटे शिवचंद को लौटाईं। ब्रिटिश हुकूमत ने इस स्वतंत्रता सेनानी परिवार को प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं रखी। उनकी जमीन जब्त कर ली गई। एक बेटा जहां पिता के साथ काले पानी की सजा भुगत रहा था तो दूसरे बेटे को जमीन-जायदाद से बेदखल कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद मियां जवाहर सिंह के बेटे मियां बदरी को मिली काले पानी की सजा को सरकार ने माफ कर दिया, लेकिन सरकारी उपेक्षा फिर भी भारी पड़ी और 1967 में उन्होंने भी दम तोड़ दिया।जानिये कैसे द्वितीय विश्व युद्ध के इस योद्धा के जॉर्ज क्रॉस मेडल के लिए पत्नी ने लड़ी तेरह साल लड़ाई, लंदन और भारत में चला था केस : कहलूर के शहीद किरपा राम को मरणोपरांत ब्रिटिश सरकार ने जॉर्ज क्रॉस से किया था सम्मानित, जिसके चोरी होने के बाद इंग्लैंड में हो रही थी नीलामी, प्रवासी भारतीयों ने नौ लाख इकट्‌ठा कर जीता केस और भारत पहुंचाई वीरता की अमूल्य धरोहर, 11 मई 2015 को इंग्लैंड के अधिकारियों ने वीरांगना ब्रह्मी देवी को सौंपी

यह सरकारी लापरवाही की जिंदा मिसाल ही है कि अपने बेटे सहित गदर आंदोलन के लिए जिंदगी होम करने वाले मियां जवाहर सिंह को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिल पाया।परिजनों ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानी को दर्जा प्रदान करने के लिए लंबा संर्घष किया लेकिन उनकी तमाम दलीलें सरकारी हुक्कमरानों के आगे नक्करखाने की तूती ही साबित हुई। यह सच है कि मियां जवाहर सिंह की बहादुरी व कुर्बानियों के किस्से आज भी मंडी जनपद में घर-घर में सुनाई देती है, लेकिन इस क्रांतिकारी के जीवन से जुड़ा स्याह पन्ना यह है कि इस महान स्वतंत्रता सेनानी का स्मारक बनाना तो दूर शहादत को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मान देना तक जरूरी नहीं समझा गया।मियां जवाहर सिंह को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिलवाने की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता संजय मंडयाल कहते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में मियां जवाहर सिंहयह सरकारी लापरवाही की जिंदा मिसाल ही है कि अपने बेटे सहित गदर आंदोलन के लिए जिंदगी होम करने वाले मियां जवाहर सिंह को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिल पाया।परिजनों ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानी को दर्जा प्रदान करने के लिए लंबा संर्घष किया लेकिन उनकी तमाम दलीलें सरकारी हुक्कमरानों के आगे नक्करखाने की तूती ही साबित हुई। यह सच है कि मियां जवाहर सिंह की बहादुरी व कुर्बानियों के किस्से आज भी मंडी जनपद में घर-घर में सुनाई देती है, लेकिन इस क्रांतिकारी के जीवन से जुड़ा स्याह पन्ना यह है कि इस महान स्वतंत्रता सेनानी का स्मारक बनाना तो दूर शहादत को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मान देना तक जरूरी नहीं समझा गया।मियां जवाहर सिंह को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिलवाने की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता संजय मंडयाल कहते हैं

स्वतंत्रता संग्राम में मियां जवाहर सिंह के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।भगत सिंह को फांसी वाले रोज़ लाहौर जेल में कैद थे “भगत राम’, 16 साल की उम्र में क्रांति के लिए कविता पढ़ने पर अंग्रेजी हुकूमत की आँखों की किरकिरी बनने वाले स्वतंत्रता सेनानी लाला भगत राम कड़ोहता के बलिदान को भूला पहाड़ के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।भगत सिंह को फांसी वाले रोज़ लाहौर जेल में कैद थे “भगत राम’, 16 साल की उम्र में क्रांति के लिए कविता पढ़ने पर अंग्रेजी हुकूमत की आँखों की किरकिरी बनने वाले स्वतंत्रता सेनानी लाला भगत राम कड़ोहता के बलिदान को भूला पहाड़.

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