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कांगड़ा में पवन काजल की एंट्री को लेकर बवाल उठने के बाद पहली बार हिमाचल भाजपा ग्राउंड जीरो पर पहुंची

कांगड़ा मण्डल फिर भड़का,भाजपा का अंग-अंग फड़का…

राणा भी नहीं बुझा पाए आग, प्रदेशाध्यक्ष भी नहीं बन पाए ढाल

■ लगातार उलझती जा रही भाजपा,उलझ गए हैं मन के तार
■ काजल की मदद की बजाए नेताओं ने और उलझा दिये हालात

मण्डल जस का तस, हो गई सब नेताओं की बस

सियासत बहुत शातिराना शय है। आज पीएम नरेंद्र मोदी की दिल की बात पर भी प्रदेश भाजपा ने एसिड टेस्ट कर दिया। कांगड़ा में पवन काजल की एंट्री को लेकर भाजपा में ही बवाल उठने के बाद पहली बार हिमाचल भाजपा ग्राउंड जीरो पर पहुंची। संगठन मंत्री पवन राणा ने धर्मशाला में विधायक विशाल नेहरिया की पकड़ का टेस्ट लिया तो कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र में प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप ने विरोध की आग में झुलस रही भाजपा का तापमान नोट किया जो कि टेम्परेचर थर्मामीटर तोड़ता नजर आया।

दरअसल, भाजपा के इन नेताओं ने एक औचक छापामारी ही की और मोदी की मन की बात के मौके को चुना। कांगड़ा-धर्मशाला के नेताओं को रविवार सुबह आठ बजे तक पता नहीं था कि आज कोई बड़ा नेता इनके बीच पहुंच जाएगा। सुबह 8 बजे के करीब इनको फोन गए कि आज मन की बात कार्यक्रम यह नेता इनके साथ देखेंगे।

कांगड़ा में असंतोष की ज्वाला को प्रज्वलित कर रहे कुलभाष चौधरी को उनके बूथ पर मन की बात कार्यक्रम के आयोजन को कहा गया और खुद प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप वहां पर पहुंचे। इस कार्यक्रम से पहले जो गुप्त हालात बनाए गए थे वो क्यों बनाए गए, यह सवाल अब गहरा गया है ।

ऐसे में कई सियासी सम्भावनाएं उभर के सामने आ रही हैं। पहली यह कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी रही कि आला नेताओं को एकदम से एसिड टेस्ट करने पड़े ? अगर अकेले कांगड़ा की ही बात करें तो सवाल उठ रहा है कि क्या कांगड़ा प्रकरण की वजह से प्रदेश भाजपा की चूलें हिल गईं हैं ? क्या प्रदेश भाजपा को लग रहा है कि काजल की एंट्री से तगड़ा विवाद खड़ा हो गया है ?

क्या हालात बेकाबू होते जा रहे हैं ? क्या भाजपा कोई हल इस तरीके से तलाश रही है कि असंतोष का सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ? क्या असंतुष्टों में किसी एक को चुनाव में उतारने की भी कोई रणनीति चल रही है ? या फिर हमेशा की तरह यह खाका तैयार किया जा रहा है कि काजल का नूर भी बना रहे और कांगड़ा भाजपा मण्डल काजल के सिपाही बनने को तैयार हो जाएं।

मगर सबसे बड़ी हैरानी की बात यह रही कि सुरेश कश्यप ने बजाए काजल के साथ मन की बात सुनने की जगह कुलभाष चौधरी के घर-आंगन को चुना। क्या वजह रही कि कुलभाष के घर पर प्रदेशाध्यक्ष पहुंचे ? अगर मोटी-मोटी नजर घुमाऐं तो यही लगता है कि कहीं न कहीं भाजपा ने यह मान लिया है कि उसको अपने मूल कैडर में काम कर रहे लोगों को तरजीह देने का मन भी कहीं न कहीं बनाया हुआ है !

वैसे अगर सब ठीक होता तो काजल के साथ मन की बात सुनी जा सकती थी । क्या इस एसिड टेस्ट में कुलभाष की जमीनी पकड़ को सिर्फ अढ़ाई घण्टों में परखा गया ? यह अलग बात है कि अढ़ाई घण्टों में भाजपा मंडल का एका कमजोर नहीं हुआ। कुलभाष कि ड्योढ़ी लांघ कर वीरेंद्र चौधरी,जिला परिषद के अध्यक्ष रमेश बराड़ समेत कई महिलाएं भी पहुंची। प्रदेशाध्यक्ष ने भी सब जायजा खुद लिया।

मन की बात में तो सब कुछ शांति से निपटा । लेकिन इसके बाद जो हुआ वो हंगामाखेज रहा। संगठन मंत्री पवन राणा और सुरेश कश्यप ने पवन काजल समेत भाजपा मण्डल के नेताओं को कांगड़ा रेस्ट हाउस में बुला लिया।

लेकिन यहां शान्त माहौल तब ज्वलनशील हो गया जब आला नेताओं ने मण्डल के नेताओं को यह कहा कि पवन काजल आपके नेता हैं और इनके साथ मिल कर सभी लोग पार्टी का काम करें। खबर यह आई कि इतना सुनने के बाद भाजपा मण्डल के तमाम नेता फिर से भड़क उठे। यहां तक कह दिया कि माइनस काजल किसी को भी टिकट मंजूर है। लेकिन काजल नहीं। काजल का पार्टी में तो स्वागत करते हैं मगर टिकट देने का स्वागत कतई नहीं किया जाएगा।

पवन को कम से कम इस आगामी चुनाव से दूर रखा जाए। महिला-पुरुष का पारा इतना चढ़ा कि जो बैठक का कमरा खुला था उसको शोर-शराबे की वजह से बंद कर दिया गया। कोई सहमति भाजपा के आला नेता नहीं करवा पाए। दुनिया को दिखाने के लिए एक फोटो खिंचवाई भी गई,लेकिन फोटो में सब मण्डल के नेता उखड़े मूड में ही नजर आए।

खैर, भाजपा के आला नेताओं ने एक गेम और भी खेली। भाजपा के घर मे किरायेदारों की तरह बैठे बहुजन समाज पार्टी के पूर्व विधायक संजय चौधरी,कांग्रेस के ही पूर्व विधायक सुरेंद्र काकू को इन बैठकों में नहीं बुलाया। सिर्फ असली हिस्सेदारों यानि भाजपा के मूल नेताओं को ही बुलाने का काम किया।

संजय चौधरी बसपा के टिकट पर जीते तो जरूर थे लेकिन सत्ताकाल में ही भाजपा में शामिल हो गए थे। खास बात यह भी रही कि वह भाजपा के मौजूदा दौर में प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य है और पूर्व में कांगड़ा भाजपा ल जिलाध्यक्ष भी रहे हैं। पर भाजपा की ताजा रणनीति यह बता गई कि अब वह बाहरी पार्टियों से आए इन दोनों नेताओं को अब झेलने के मूड में नहीं है।

घर के लोगों की दूरियां पाटने के लिए उन्हें ही पटा कर रखने का मन बना चुकी है। मगर जिस तरह का माहौल रहा वह भी सही नहीं आंका जा सकता। काजल का साथ देने के लिए इन नेताओं ने अपनी ताकत तो झोंकी लेकिन काजल की ताकत को बढ़ाने के लिए मण्डल की ताकत को इकट्ठा नहीं कर पाए। कुलभाष का घर चिन्हित कर के यह भी कहीं न कहीं चिन्हित कर दिया कि नाराज नेताओं में उन्हें कुलभाष ही पवन की राह में बड़ा रोड़ा नजर आ रहे हैं न कि कांगड़ा मण्डल के बकाया नेता।

यही वजह रही कि बड़े-बड़े रणनीतिकार नेता भी मण्डल का एका तुड़वाने में असफल साबित हुए और मण्डल एक बार फिर अपना असंतोष से भरा कमंडल उठा कर अपनी राह निकल गया और राणा और कश्यप की जोड़ी देहरा में रविंद्र रवि,भाजपा मंडल देहरा में होशियार सिंह के बीच छिड़ी दूसरी जंग को खत्म करने का सपना लेकर देहरा निकल गए। खैर, यह अलग बात है कि कांगड़ा में जो अरमान इन नेताओं ने दिल में संजोए थे,वह भरी महफ़िल में लुट गए।

 

 

 

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