कचनार
जोड़ों के रोग, रक्त-पित, फोड़े व फुंंसियों से निजात दिलाने के साथ ही चटनी-मुरब्बा और आचार बनाने में भी प्रयोग होती है कचनार
हिमाचल प्रदेश को कुदरत ने बहुत ही गुणवान औषधीय पेड़ पौधों से नवाजा है।
प्रदेश सीमावर्ती पंजाब क्षेत्र में पेड़ पर लगने वाली कचनार (करैलों) की सब्जी कई औषधीय गुणों से भरी है। जिसके चलते चंगर क्षेत्र के लोग इसे बड़े चाव के साथ खा रहे हैं। दूरदराज से लोग इस मौसमी सब्जी को लाकर या अपने रिश्तेदारों से मंगवा कर इस स्पैशल भाजी का आंनद ले रहे हैं। नयनादेवी व स्वारघाट क्षेत्र की बात करें तो यह सब्जी हिमाचल के साथ लगते पंजाब में भी इसके पेड़ पाए जाते हैं। हिमाचल में कई ऐसी जड़ी बूटियां है, जिनका इस्तेमाल न केवल दवाईयों के लिए बल्कि सब्जी के लिए भी होता है। कचनार (करैलों) जो मार्च-अप्रैल में पेड़ पर लगती है। कचनार पेड़ की टहनियों में लगती है।
कचनार की लकड़ी जलाने के काम आती है, जबकि पत्तियां पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग लाई जाती हैं। जब पेड़ की टहनियों में कलियां व फूल लगते हैं, तब इन फूलों को सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। बिलासपुर सीमा से सट्टे पंजाब राज्य की नहर के किनारे इसके पेड़ ज्यादा देखने को मिलते हैं। करैलों के फूल की कई प्रकार की सब्जियां लोग बनाते हैं। लोगों कि माने तो इसकी तकसीर ठंडी मानी होती है तथा कचनार का प्रयोग चटनी, मुरब्बा, आचार बनाने में भी किया जाता है।
हिमाचल प्रदेश के लगभग सभी जिलों खासकर गर्म इलाकों में आसानी से यह पेड़ मिल जाते हैं तथा इसके फूल कई रोगों का उपचार भी करते हैं। हिमाचल आने वाले कई सैलानी भी इस कचनार के फूलों को सब्जी के लिये ले जाते हंै। बुजुर्गों के अनुसार इस कचनार कि सब्जी खाने से कई तरह के रोगों से छुटकारा मिलता है तथा यह बहुत ही औषधीय गूणों का भंडार है।
कई रोगों का उपचार करते हैं कचनार के फूल की कलियां
बुजुर्गों की मानें तो कचनार के फूल व कलियां कई रोगों जैसे जोड़ों के रोग के अलावा रक्त-पित, फोड़े व फुंंसियों की समस्याओं से भी यह कचनार की कलियां निजात दिलाती हैं।
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