समानता के अधिकार
समानता के अधिकार के संदर्भ में प्रदेश हाईकोर्ट ने अहम निर्णय सुनाया है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने कहा कि कर्मचारियों की सेवा शर्तों में मनमानी करना समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है। अदालत ने याचिकाकर्ता को वर्ष 1986 से संशोधित वेतन देने के आदेश दिए हैं। साथ ही बकाया राशि को 30 जून 2023 तक पांच फीसदी ब्याज सहित अदा करने को कहा गया है। याचिकाकर्ता भारत सिंह कंवर और अन्य की याचिका का निपटारा करते हुए अदालत ने यह निर्णय सुनाया। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य और इसके उपकरण कर्मचारियों की कुछ श्रेणियों के लिए वेतनमान निर्धारण में मनमानी नहीं कर सकते है। समान श्रेणी के कर्मचारियों से मनमानापन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत है। राज्य सरकार के ऐसे मनमाने निर्णय की न्यायिक समीक्षा कर हस्तक्षेप किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम में वर्ष 1983 में नियुक्त हुए थे। उस समय उनका वेतनमान 570-1080 रुपये मासिक था। इस वेतनमान को वर्ष 1994 में संशोधित कर 1500-2640 कर दिया गया था। उसके बाद इस वेतन को संशोधित कर 2000- 3500 रुपये कर दिया था। निगम ने कुछ श्रेणी को संशोधित वेतनमान का लाभ वर्ष 1986 से और याचिकाकर्ताओं को वर्ष 1994 से दिया। याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध निगम ने दलील दी कि उन्हें यह वेतनमान वित्त विभाग की स्वीकृति के बाद दिया गया है। अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन के बाद पाया कि निगम की ओर से वेतन विसंगति का यह निर्णय कानूनी गलत है। अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया।