शास्त्री शिक्षकों
हिमाचल प्रदेश में शास्त्री शिक्षकों की भर्ती के लिए बीएड धारकों को सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल कोई राहत नहीं मिली है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर करने में हुई देरी को माफ कर दिया है। अदालत ने हिमाचल सरकार और अन्य को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में अपना पक्ष रखने का समय दिया है। बीएड धारक अंकुर रैना ने हिमाचल हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। प्रधान सचिव शिक्षा, निदेशक प्रारंभिक शिक्षा, उपनिदेशक प्रारंभिक शिक्षा हमीरपुर और एनसीटीई को प्रतिवादी बनाया है। हाईकोर्ट ने बीएड को अनिवार्य करने की मांग को खारिज कर दिया था।
बीएड धारकों की ओर से दलील दी गई थी कि राज्य सरकार ने शास्त्री शिक्षक के भर्ती एवं पदोन्त्ति नियमों में एनसीटीई की अधिसूचना के तहत जरूरी संशोधन नहीं किया है। एनसीटीई ने वर्ष 2011 में अधिसूचना जारी कर शास्त्री शिक्षक के लिए बीएड की अनिवार्य योग्यता निर्धारित की है। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 29 (1) और 23 (1) के तहत एनसीटीई के पास ही शिक्षक के लिए न्यूनतम पात्रता निर्धारित करने का अधिकार है। यदि योग्यता निर्धारित करते समय नियमों के अनुरूप प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है तो राज्य सरकार एनसीटीई की ओर से जारी निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। अदालत ने पाया था कि शास्त्री शिक्षक के लिए बीएड योग्यता निर्धारित करते समय एनसीटीई ने धारा 3, 12 और 12ए का उल्लंघन किया है।
गौरतलब है कि चयन आयोग ने वर्ष 2020 में शास्त्री शिक्षकों के 1182 पद विज्ञापित किए थे। ये पद 50 प्रतिशत बैचवाइज और 50 प्रतिशत सीधी भर्ती से भरे जाने थे। उक्त रिक्त पदों में से 582 पद विभाग ने बैचवाइज भर दिए हैं, लेकिन आयोग की ओर से भरे जाने वाले 582 पदों पर शिक्षकों को अभी नियुक्ति नहीं दी गई है। 23 दिसंबर, 2021 को आयोग ने शास्त्री का परिणाम घोषित किया था।