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जंगलों से प्राप्त कचरे को अब उपयोगी रसायनों में किया जाएगा तब्दील, कचरे से बायोएथेनॉल, बायोडीजल, लैक्टिक एसिड जैसे रसायन बनेंगे

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जंगलों से प्राप्त कचरे

कृषि, कागज, उद्योगों और जंगलों से प्राप्त कचरे को अब उपयोगी रसायनों में तब्दील किया जा सकेगा। इस कचरे से बायोएथेनॉल, बायोडीजल, लैक्टिक एसिड जैसे रसायन बनेंगे। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने अब ऐसे सूक्ष्मजीवों की पहचान की है जो खेती के अपशिष्ट और कागज के कचरे में मौजूद होते हैं। इनको उपयोगी रसायनों, जैव ईंधन और कई औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त कार्बन में प्रभावी रूप से परिवर्तित कर सकते हैं। इस शोध का विवरण जर्नल बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी रिपोटर्स में प्रकाशित किया गया है।

इप्लांट ड्राई मैटर, जिसे लिग्नोसेल्यूलोज के रूप में भी जाना जाता है, पृथ्वी पर सबसे प्रचुर मात्रा में नवीकरणीय सामग्रियों में से एक है। कृषि, जंगलों और उद्योगों से निकलने वाले इस लिग्नोसेल्यूलोसिक कचरे को बायोप्रोसेसिंग प्रक्रिया का उपयोग करते हुए मूल्यवान रसायनों में परिवर्तित किया जा सकता है। लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास को उपयोगी रसायनों में बदलने के लिए वैज्ञानिक समेकित बायोप्रोसेसिंग (सीबीपी) नामक एक अभिनव विधि की खोज कर रहे हैं। इस पद्धति में सैक्ररिफिकेशन और फर्मेंटेशन (उबालकर) एक चरण में संयोजित किया जाता है। इसे करने का एक तरीका सिंथेटिक माइक्रोबियल कंसोर्टियम (सिनकॉन्स) का उपयोग करना है।

आईआईटी मंडी के वैज्ञानिकों ने पायरोलिसिस के बाद सेल्युलोज प्रोसेसिंग प्रक्रिया के लिए दो सिंकोन्स सिस्टम का अध्ययन किया। आईआईटी मंडी के डॉ. श्याम कुमार मसाकापल्ली एसोसिएट प्रोफेसर स्कूल ऑफ बायोसाइंसेस एंड बायोइंजीनियरिंग ने कहा कि हमने सिंकोन्स को बनाने के लिए कई सूक्ष्मजीवों का विश्लेषण किया है, जो सेल्युलोज को इथेनॉल और लैक्टेट में बदल सकते हैं। हमने दो सिंकोन्स विकसित किए हैं। एक कवक-जीवाणु जोड़ी और एक थर्मोफिलिक जीवाणु जोड़ी। दोनों ने क्रमश: 9 प्रतिशत और 23 प्रतिशत की कुल पैदावार के साथ प्रभावी सेल्युलोज में गिरावट का प्रदर्शन किया है।

पायरोलिसिस के बाद अवशेष बायोमास से हमें उपयोगी भौतिक-रासायनिक गुणों के साथ एक कार्बन सामग्री प्राप्त हुई। शोधकर्ताओं ने एक अन्य इंजीनियर्ड फर्मेंटेटिव प्रक्रिया को शामिल करके थर्मोफिलिक सिंकॉन्स से (33 प्रतिशत) अधिक एथेनॉल उत्पादन प्राप्त किया। वहीं, दोनों का एक साथ उपयोग करने से सैक्ररिफिकेशन के लिए सेल्यूलोज-क्रियाशील एंजाइम (सेल्युलेस) से 51 प्रतिशत एथेनॉल का उत्पादन हुआ।

आईआईटी मंडी की सहायक प्रोफेसर स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग डॉ. स्वाति शर्मा ने कहा कि डिजाइन किए गए माइक्रोबियल कंसोर्टिया को सेल्युलोज के बायोप्रोसेसिंग के लिए सेल्यूलस, इथेनॉल और लैक्टेट औद्योगिक एंजाइमों जैसे कीमती एवं उपयोगी सामान के लिए अपनाया जा सकता है। एक बार बड़े स्तर पर इसको करने के बाद इस प्रक्रिया से बायोरिएक्टरों में स्थायी रूप से बायोएथेनॉल और अन्य हरित रसायन उत्पन्न किए जा सकते हैं। पायरोलिसिस के बाद प्राप्त कार्बन का उपयोग पानी को फिल्टर करने और इलेक्ट्रोड जैसे कई अनुप्रयोगों में किया जा सकता है। इस विधि का पेटेंट कराया गया है और इसके लिए बायोप्रोसेस का और विस्तार किया जा रहा है। इस शोध में डॉ. श्याम कुमार, डॉ. स्वाति शर्मा के साथ शोधार्थियों में शामिल आईआईटी मंडी से चंद्रकांत जोशी, महेश कुमार, ज्योतिका ठाकुर, यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ, यूनाइटेड किंगडम से मार्टिन बेनेट और डेविड जे लीक और केआईटी, जर्मनी से नील मैकिनॉन के सहयोग से तैयार किया गया है।

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