केसर के नाम पर कुसुंभ
बहुत से किसान केसर के नाम पर कुसुंभ के पौधे उगाकर गुमराह हो रहे हैं। ऐसे किसानों को राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के उत्तर भारत क्षेत्रीय कार्यालय जोगिंद्रनगर ने सचेत करते हुए दिशा-निर्देश दिए हैं कि वह सावधान हो जाएं, क्योंकि यह केसर नहीं है। यह कुसुंभ नाम का पौधा है, जो बहुत कम कीमत वाला है और मार्केट में इसके दाम बहुत कम हैं। दरअसल कुछ किसान प्रदेश के कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में केसर की खेती होने का दावा कर रहे हैं। साथ ही केसर के नाम पर किसानों को किसी अन्य प्रकार के पौधे का बीज देकर इस खेती के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। लेकिन जब किसान अपनी तैयार फसल को लेकर मार्केट में पहुंच रहे हैं तो वह खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
उन्हें न तो उनकी ओर से तैयार तथाकथित केसर की खेती के दाम मिल रहे हैं, बल्कि किसानों को परेशानी का सामना भी करना पड़ रहा है। इस संबंध में उन्हें यह भी कहा जा रहा है कि जिला बिलासपुर और हमीरपुर के कुछ उष्ण कटिबंधीय या उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में यह खेती करें। मगर इस संबंध में आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान जोगिंद्रनगर स्थित आयुष मंत्रालय भारत सरकार के राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के उत्तरी भारत राज्यों के क्षेत्रीय सुगमता केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अरुण चंदन की ओर से एडवाइजरी जारी कर किसानों को सावधान रहने का सुझाव दिया गया है। उनका कहना है कि किसान असल में केसर के नाम पर कुसुंभ नामक पौधे की खेती कर रहे हैं। इस तरह से करें असली केसर की पहचान उन्होंने बताया कि असली केसर समशीतोष्ण क्षेत्र की फसल है।
इसका वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटिवस है। इसकी खेती कॉर्म के माध्यम से ही की जा सकती है, जबकि कुसुंभ (सैफलॉवर) कार्थमस टिक्टोरियम है। इसकी खेती बीज से की जाती है और यह उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की फसल है। ऐसे में यदि कोई किसानों को उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में केसर उगाने की सलाह देता है तो वे केसर के नाम पर गलत प्रजाति की खेती कर सकते हैं। ै किसान ऐसे किसी भी दावे से भ्रमित न हों और 18001205778 राष्ट्रीय हेल्पलाइन से जानकारी ले सकते हैं। केसर की खेती में है भारत का केवल 5 फीसदी योगदान दुनिया भर में केसर की खेती केवल कुछेक देशों मसलन ईरान, ग्रीस, मोरक्को, स्पेन, इटली, तुर्की, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, पाकिस्तान, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया में ही की जाती है। भारत में केसर की खेती का 90 प्रतिशत उत्पादन अकेले जम्मू एवं कश्मीर क्षेत्र (प्रमुख बारामूला और बडगाम) में ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश की जलवायु भी उपयुक्त है।