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शोध: अब हिमाचल में तैयार होगा ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशिया का नीम

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दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में तैयार होने वाला मालाबार नीम (मीलिया दुबिया) अब हिमाचल में भी तैयार होगा। जिला मंडी के पांगणा निवासी युवा शोधार्थी ने इसकी पौध तैयार करने में कामयाबी पाई है। प्रारंभिक तौर पर इसे पांगणा के आसपास बंजर भूमि में लगाया जाएगा। नीम का प्रयोग दवाइयों में होता है। इसकी महंगी लकड़ी की मांग काफी है और इसके मुंहमांगे दाम मिलते हैं।

वन अनुसंधान संस्थान देहरादून में शोध कर रहे पांगणा के विपुल शर्मा ने बताया कि हिमाचल में यह पहली बार तैयार होगा। हालांकि, भारत में यह खासकर सिक्किम हिमालय, उत्तरी बंगाल, असम, खासी पहाड़ियों, ओडिशा के पहाड़ी क्षेत्रों, डेक्कन पठार और पश्चिमी घाटों में 600 से 800 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। इसे भारत के अधिकांश हिस्सों में सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है।

पौधे तैयार करने के लिए चाहिए ऐसा वातावरण

नीम की इस प्रजाति के पौधे 800 मिमी और उससे अधिक की वार्षिक वर्षा वाली रेतीली दोमट, लाल और लेटेराइट मिट्टी में अच्छी तरह विकसित होते हैं। तापमान न्यूनतम 0-15 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 30-43 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। यह सामान्य रूप से 1000 मिमी की भारी वर्षा और 50-90 प्रतिशत की सापेक्ष आर्द्रता वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। यह सुंदर पर्णसमूह की विस्तृत फैलती शाखाओं के साथ 25 मीटर लंबा होता है। इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है। दिसंबर-जनवरी में पत्तियां झड़ जाती हैं। फरवरी-मार्च में नई पत्तियां फूलों के साथ आ जाती हैं। फल अक्तूबर-फरवरी में पकते हैं।

यहां होता है लकड़ी का उपयोग

इस पेड़ की लकड़ी का उपयोग पैकिंग केस, माचिस की तीली, फोटो फ्रेम, पेंसिल, मिनी फर्नीचर जैसे स्टूल, बेंच, लकड़ी की मेज, आंतरिक सजावट, खिड़की के दरवाजे, लकड़ी के रैक, पैकिंग उद्योग, संगीत वाद्य यंत्र, चाय पाउडर बॉक्स, सिगार बॉक्स, भवन के उद्देश्य, छत के तख्ते, कृषि उपकरण के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। मिलिया डुबिया रोपण के दो साल में 40 फीट तक बढ़ता है। 10 साल पुराने रोपण के प्रति एकड़ प्रति वर्ष औसतन 40 टन बायोमास तक उपज देने की क्षमता रखता है। मीलिया दुबिया की फसल की न्यूनतम अवधि छह साल है। अच्छे आर्थिक मूल्य के लिए इसे आठ साल तक की आयु तक बढ़ाया जा सकता है। एक एकड़ में लगभग 400 पेड़ लगाए जा सकते हैं। ये 6-8 वर्षों में 10-12 लाख प्राप्त करते हैं।

क्या कहते हैं शोधार्थी विपुल

विपुल ने बताया कि मालाबार नीम की प्रजाति वन अनुसंधान संस्थान देहरादून में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार के मार्गदर्शन में देश के विभिन्न भागों में मल्टी लोकेशन ट्रायल के माध्यम से तैयार की गई है। हिमाचल में मालाबार नीम को उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी, हमीरपुर में डॉ. दुष्यंत शर्मा के मार्गदर्शन में पहली बार लगाया गया था।

 

 

 

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