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प्रदेश हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद भीख मांगने वाले बच्चों का पुनर्वास न करने पर लिया संज्ञान

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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद भीख मांगने वाले बच्चों का पुनर्वास न करने पर संज्ञान लिया है। अदालत ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग सहित राज्य सरकार से इनके पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी तलब की है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई तीन हफ्ते के बाद निर्धारित की है। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि इस संवेदनशील मामले में केंद्र और राज्य सरकार ने चार माह बीत जाने के बाद भी जवाब दायर नहीं किया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने दोनों सरकारों से भिखारियों और सड़कों पर दयनीय स्थिति में जीने वाले बच्चों से जुड़े 10 बिंदुओं पर जानकारी तलब की है।

अदालत को राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में खोले गए आश्रयों की संख्या, पहचान के बाद स्कूलों में भर्ती करवाए गए बच्चों की संख्या बतानी होगी। इसके अलावा भीख मांगने को मजबूर बच्चों और उनके परिवार वालों को दी गई काउंसलिंग की संख्या, ऐसे बच्चों की संख्या जिनकी चिकित्सा जांच की गई है, ऐसे बच्चों की संख्या जिन्हें भीख मांगने अथवा बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जा रहा हो, संस्थागत देखभाल में रखे गए बच्चों की संख्या और उन बच्चों की संख्या जिन्हें उनके माता-पिता अथवा अभिभावकों को सौंपा जा चुका है, इन सभी बिंदुओं पर सरकार को जानकारी देने के आदेश दिए गए हैं। अदालत ने ऐसे बच्चों की संख्या भी बताने के आदेश दिए हैं जो पहचान हो जाने के बाद प्रदेश से चले गए हैं अथवा उनके वास्तविक राज्यों में भेजा जा चुका है।

विधि की पढ़ाई कर रही अस्मिता ने जनहित में याचिका दायर की है। आरोप लगाया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद भीख मांगने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। मजबूरन गरीब बच्चे भीख मांगने को विवश हैं। अदालत को बताया गया कि शिमला के मॉल रोड, लक्कड़ बाजार, पुराना बस स्टैंड के पास बच्चों को भीख मांगते हुए देखा जा सकता है। अदालत के ध्यान में लाया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने 17 जनवरी 2022 को सभी राज्यों को आदेश दिए थे कि वे भीख मांगने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए जरूरी कदम उठाएं। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग सहित सभी राज्य सरकारों को आदेश दिए थे कि इन बच्चों के लिए पॉलिसी बनाई जाए और ऐसे बच्चों को तलाश कर इनका पुनर्वास किया जाए।

इन आदेशों की अनुपालना में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने 27 जनवरी 2022 को सभी सरकारों को जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए थे। याचिका में आरोप लगाया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और आयोग के निर्देशों के बावजूद राज्य सरकार इन बच्चों के पुनर्वास के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रही है। प्रदेश के जैविक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए वन विभाग नियमों में करेगा संशोधन प्रदेश के जैविक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए वन विभाग नियमों में संशोधन करेगा। यह जानकारी अतिरिक्त सचिव पर्यावरण ने हाईकोर्ट के समक्ष दी। बताया गया कि 27 अप्रैल 2023 को अदालत के आदेशों की अनुपालना में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक की गई। अदालत को बताया गया कि जैविक विविधता अधिनियम 2002 के कार्यान्वयन के लिए सरकार गंभीर है। जैविक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए दो कंपनियों को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया है।

मैसर्ज पोंटिका एरोटेक लिमिटेड और मैसर्ज आयुर्वेट लिमिटेड कंपनी से जनवरी और फरवरी माह में कुल विक्रय की जानकारी मांगी गई थी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई दो हफ्ते के बाद निर्धारित की है। पिछली सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया था कि राज्य सरकार की ओर से संबंधित कंपनियों को जैविक विविधता अधिनियम की धारा 7 के तहत नोटिस जारी किया जा रहा है। जबकि, अधिनियम की धारा 23 और 24 के तहत राज्य जैव विविधता बोर्ड से अनुमति लेने का प्रावधान है। यदि कोई कंपनी जैविक संसाधनों को बिना स्वीकृति से इस्तेमाल करती है तो उस स्थिति में अधिनियम की धारा 56 के तहत एक लाख रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है।

याचिकाकर्ता ने अदालत को सुझाव दिया था कि राज्य सरकार की ओर से दिए जाने वाले नोटिस में ये सारे आदेश होने चाहिए। संबंधित कंपनियों को आदेश दिए जाएं कि प्रदेश के जैविक संसाधनों का इस्तेमाल करने के लिए राज्य जैव विविधता बोर्ड से स्वीकृति ली जाए। अदालत ने सरकार को बाकी सुझावों की अनुपालना करने के आदेश दिए हैं। पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस ने जैविक विविधता अधिनियम 2002 के कार्यान्वयन के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में पूरी तरह से विफल रही है। यह अधिनियम राज्य को स्वयं के जैविक संसाधनों का उपयोग करने के लिए उनके संप्रभु अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है। अधिनियम ने जैव संसाधनों तक पहुंच और विनियमित करने के लिए त्रिस्तरीय संरचना का प्रावधान किया गया है। इसमें राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, राज्य जैव विविधता बोर्ड और स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों का गठन किया गया है।

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