हिमाचल प्रदेश के सबसे प्राचीन व समृद्ध गद्दी समुदाय की छह उप-जातियों के समुह हिमालयन गद्दी यूनियन ने अपनी वर्षों पुरानी मांग को अब तक पूरा न होने पर आज शुक्रवार को प्रदेश की दूसरी राजधानी धर्मशाला में महा आक्रोश रैली निकाल कर आंदोलन का बिगुल बजा दिया है। हिमालयन गद्दी यूनियन हिमाचल प्रदेश ने उपजातियों के साथ गद्दी शब्द जोड़ने के लिए धर्मशाला के कोतवाली बाज़ार फव्वारा चोंक से उपायुक्त कार्यालय धर्मशाला तक रोष महारैली हजारों की संख्या में एकत्रित होकर निकाली। जिसमे छह उपजातियों के राज्य भर के लोगों ने पारंपरिक भेषभूषा व वाद यंत्रों के साथ रैली निकाली। डीसी ऑफिस में उपायुक्त के माध्यम से प्रदेश सरकार को ज्ञापन सौंपा गया।
प्रदेश सरकार व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि राजस्व त्रुटि सुधार कर जल्द से जल्द गद्दी शब्द से वंचित उपजातियों को राहत प्रदान की जाए। उन्होंने कहा कि आज उपजातियों के लोग हज़ारों की संख्या में सड़कों पर उतरकर महाआक्रोश रैली शांतिपूर्ण तरीके से निकली है। यूनियन के अध्यक्ष मोहिंद्र सिंह ने कहा कि 1867 के काँगड़ा के गजट में गद्दी शब्द जुड़ा है। इसके बाद सीएम से मांग उठाए जाने पर जांच करवाई गई, जिस पर डीसी की ओर से गद्दी शब्द जुड़ना सही पाया गया है। इसके बाद भी मांगों पर गंभीरतापूर्ण तरीके से विचार नहीं हो रहा है, तो अब लाखों की संख्या में सड़कों पर उतरकर उग्र आंदोलन करने को मजबूर होना पड़ेगा। वहीं सरकार व सीएम जयराम ठाकुर की ओर से दो वर्ष पहले से लगातार इस मामले की तीन बार राजस्व जांच भी करवाई गई है, जिसमें भी गद्दी शब्द से जोडऩा उचित पाया गया है, बाबजूद इसके लगातार नोटिफिकेशन में देरी पर यूनियन के पदाधिकारियों ने बड़े सवाल उठाए हैं। गद्दी समुदाय की कांगड़ा-चंबा की अढ़ाई लाख संख्या वाली छह उपजातियों में आक्रोश है। इतना ही नहीं सरकार पर लगातार अनदेखी के आरोप लगाए हैं, वहीं अब अन्य विकल्प तलाशने की भी चेतावनी दे डाली है।
हिमालयन गद्दी यूनियन की छह वंचित उप-जातियों के हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष मोहिंद्र सिंह ने कहा कि गद्दी समुदाय की छह वंचित उप-जातियों के साथ राजस्व अभिलेख में गद्दी शब्द जुड़ा है, जोकि बाद में हटाया गया है। इस मुद्दे को पिछले कई वर्षों से अलग-अलग मंचों के माध्यम से उठाया जा रहा है, जबकि हिमालयन गद्दी यूनियन ने 2017 से लगातार सरकार के समक्ष अपने इस मुद्दे को लेकर मांग रखी है, तथा समय-समय पर सरकार को अपने इस मुद्दे से अवगत करवाया है। गद्दी कोई एक विशेष जाति नहीं है, यह एक समुदाय का नाम है जिसके अंतर्गत 13 उप-जातियां आती है, लेकिन छह उपजातियां ऐसी है, जिनके आगे राजस्व अभिलेख में गद्दी शब्द किन्हीं कारणों से छूट गया है, यह उपजातियां है बाड़ी, हाली, सीप्पी, ढोगरी, रेहाड़े व लोहार हैं। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 2018 में स्वयं इस मामले की छानबीन तत्कालीन जिलाधीश से करवाई गई थी, जिसमें डीसी ने 19 जून 2020 को अपनी रिपोर्ट सरकार के समक्ष पेश कर दी है जिसमें साफ साफ यह लिखा गया है कि छानबीन में यह पाया गया है कि इन वंचित उपजातियों के साथ गद्दी शब्द का जोडऩा उचित है। आगामी कार्रवाई हेतु आदेश दिए जाएं, लेकिन सरकार ने आज तक कोई भी कदम अधिसूचना जारी करने हेतु नहीं बढ़ाया है। न ही किसी तरह का आदेश जिलाधीश कांगड़ा को त्रुटी सुधार के लिए दिया गया है, जिससे इन छह वंचित उप जातियों में भारी रोष है। अध्यक्ष मोहिंद्र सिंह ने कहा कि गद्दी कल्याण बोर्ड की छठवीं बैठक में भी यह प्रस्ताव पास किया जा चुका है कि इन छह वंचित उप-जातियों के साथ गद्दी शब्द को जोड़ा जाए। कई पंचायत प्रधानों ने भी यहां लिख कर दिया है कि यह वंचित उपजातियां गद्दी समुदाय का अभिन्न अंग है, जिनका भाषा बोली, खान-पान, रहन-सहन, व्यवसाय, पहनावा, शादी ब्याह व जन्म से लेकर मृत्यु तक एक ही रीति रिवाज है, तथा इन वंचित उपजातियों के साथ गद्दी शब्द का लगना उचित प्रतीत होता है। पदाधिकारियों ने सरकार को चताते हुए कहा कि गद्दी समुदाय के छह उजातियों के लोग 10 विधानसभा क्षेत्रों में रहते हैं, जिसमें भरमौर, चंबा, चुराह, बनीखेत, भटियात, नूरपुर, शाहपुर, धर्मशाला, पालमपुर, बैजनाथ, तथा जनसंख्या अढ़ाई लाख से अधिक है। यदि मांगों को लेकर जल्द से जल्द उचित कदम नहीं उठाया जाता है, तो जनता उग्र होने में देरी नहीं लगाएगी। साथ ही उन्होंने अन्य विकल्पों पर विचार करने की भी चेतावनी दे डाली है। उन्होंने कहा कि वह कुछ की संख्या की बजाय लाखों की संख्या में है।