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दिव्या ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा श्री कृष्ण कथा ..

धर्मशाला के लायन्ज क्लब मे कथा का शुभ आरंभ ज्योति प्रज्वालन से किया गया जिसके लिए श्री प्रेम सूद जी, श्री बी पी शर्मा जी, श्री अभिषेक जी, श्री बलदेव जी, श्री संजय शर्मा, श्रीमती रंजना सूद, श्रीमती विजया ठाकुर, श्रीमती रेखा राणा एवं श्रीमती शांति देवी जी ने की…भगवान श्री कृष्ण लीलाओं और कृष्ण भक्ति में निहित अकथनीय ज्ञान, दिव्यता, प्रेम और धार्मिकता को फैलाने के लिए, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया गया। कथा के प्रथम दिवस साध्वी भाग्य श्री भारती जी ने बताया कि इस मानव जीवन को सार्थक बनाने का एकमात्र उपाय है इसे परमात्मा की सच्ची भक्ति से संरक्षित व भरपूर कर दिया जाए । जैसे भक्त नामदेव जी ने किया था , नामदेव प्रसंग सुनाते हुए साध्वी जी ने बताया कि भक्त नामदेव ने भगवान की वास्तविक भक्ति को कैसे पाया अपने गुरु विनोबा खेचर जी के द्वारा।

यदि हम भी भगवान की वास्तविक भक्ति को पाना चाहते हैं तो आवश्यकता है एक ऐसे पूर्ण गुरु की खोज करे जो हमारे अंतर्मन में भगवान श्री कृष्ण का साक्षात्कार करा हमें वास्तविक भक्ति को जना दे। आगे साध्वी जी ने विस्तार से बताया कि प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में भक्त होता है, लेकिन हमारी वह भक्ति कभी- कभी जीवनसाथी , परिवार,धन, नाम की प्रसिद्धि, जीवन की विलासिता आदि के लिए हो जाती है। यकीन मानिए, हमारे विचार व मान्यताओं से प्रेरित यह बाहरी अंधभक्ति , वास्तव में हमारे मन के प्रति है न कि भगवान के प्रति।

जबकि सही मायने में, भक्ति की शुरुआत तो भगवान को जानने से होती है, उनके दर्शन से होती है। अनंत और उदात्त प्रेम के सागर वह ईश्वर ही समय – समय पर मानव जाति को ब्रह्मज्ञान प्रदान करने के लिए सत्गुरु की भूमिका में मानव वेश में प्रकट होते हैं ताकि भगवान को भीतर दिखाया जा सके। एक जाग्रत भक्त जो इस ज्ञान का अभ्यास करता है, फिर हर विचार और भावना से भगवान को भी सब जगह देखता है और वह परम प्रेमस्वरूप ईश्वर भी अपने भक्त को अपने सर्वव्यापि प्रेम के झरोखे से निरंतर स्नेहिल दृष्टि से निहारता है।

जैसा कि राधा, गोपिकाओ , मीरा, अर्जुन,नरसि मेहता,आदि भक्तों ने किया जोसे प्राप्त पूरी तरह भगवान पर भरोसा कर अपनी भक्ति के कारण अमर हो गए।
आगे साध्वी जी ने ब्रह्मज्ञान के महत्व को समझाते हुए कहा कि पूर्ण गुरु से प्राप्त ध्यान और भक्ति की शाश्वत विधि ही वास्तविक सुख और सद्भाव का मार्ग प्रशस्त करती है। गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी ऐसे ही पूर्ण सत्गुरु है, जो दिव्य दृष्टि प्रदान कर एक साधक को उसके भीतर ईश्वर का दर्शन करवाते हैं, जिससे वह अध्यात्म के उच्चतम शिखर ‌पर पहुंचेने में सफल हो पाता है।

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