Sawan Somvar 2023
Sawan Ka Somwar 2023 सावन में इस बार शिव भक्तों को शिव की आराधना के लिए मिल रहे हैं आठ सोमवार। अधिमास के कारण सावन विशेष पूजन को मिलेंगे 59 दिन l शुद्ध सावन चार से 17 जुलाई व 17 से 31 अगस्त तक बीच में सावन अधिमास। ज्योतिषाचार्य का मानना है कि सोमवार के साथ मंगलवार का भी सावन में विशेष महत्व है।
देवाधिदेव महादेव का प्रिय सावन मास अबकी अधिमास (अधिक मास) के कारण 59 दिनों का होगा। इसमें पूजा-आराधना, जप-तप और ध्यान-साधना के लिए शिव भक्तों को आठ सोमवार मिलेंगे। सावन मास का आरंभ चार जुलाई (मंगलवार) को हो रहा है और समापन 31 अगस्त को होगा। इसमें 18 जुलाई से 16 अगस्त तक शुद्ध सावन, कृष्ण पक्ष चार जुलाई से 17 जुलाई और फिर शुद्ध सावन शुक्ल पक्ष 17 अगस्त से 31 अगस्त तक रहेगा।
अधिकमास भी इस बार सावन में
शुद्ध सावन कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के बीच अधिक सावन मास होगा, जो श्री-हरि (लक्ष्मी-नारायण) को समर्पित माना जाता है। सावन के अनुष्ठान अबकी हरि-हर यानी शिव के साथ भगवान विष्णु के भी नाम होगा। ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार शास्त्रों में प्रविधानित मास, पक्ष की महत्ता बनाए रखने के लिए इसे किसी न किसी देवता को समर्पित किया गया है। इसमें तिथियों की घट-बढ़ में अधिमास संतुलन बनाता है। श्रीहरि को समर्पित होने से इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। मान्यता है कि अधिमास में श्री-हरि (लक्ष्मी-नारायण) धरा पर कृपा बरसाते हैं।
सावन में मंगलवार का विशेष महत्व
सावन में मंगलवार का भी महत्व होता है। इसमें भौमव्रत, दुर्गा यात्रा, गौरी पूजन, हनुमत दर्शन किया जाता है। इस बार सावन में मंगलवार भी आठ मिल रहे। मास शिवरात्रि 16 जुलाई व 13 अगस्त और 15 व 30 जुलाई और 14 व 18 अगस्त को प्रदोष है।
यह है अधिमास
सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365 दिन छह घंटे लगते हैं।
सनातन धर्म में काल गणना पद्धति चंद्र गणना आधारित है।
इसमें चंद्रमा की 16 कलाओं के आधार पर दो पक्षों का एक मास माना जाता है।
कृष्ण पक्ष में प्रथम दिन से पूर्णिमा तक प्रत्येक मास में साढ़े 29 दिन होते हैं।
इस दृष्टि से गणना अनुसार एक वर्ष 354 दिनों का होता है।
इस प्रकार सूर्य गणना व चंद्र गणना पद्धति में हर वर्ष में 11 दिन, तीन घटी और लगभग 48 पल का अंतर आता है।
यह अंतर तीन वर्ष में बढ़ते-बढ़ते लगभग एक माह का हो जाता है।
इस कारण प्रति वर्ष पर्व-त्योहार कुछ आगे-पीछे होते हैं।
इस अंतर को दूर करने के लिए भारतीय ज्योतिष शास्त्र में तीन वर्षों में एक अधिमास का विधान है।
अधिमास से तीन वर्षों में सूर्य गणना व चंद्र गणना दोनों पद्धतियों से काल गणना में समानता आती है। इसके बावजूद कुछ अंतर रह जाता है। इसे दूर करने के लिए क्षय मास की व्यवस्था है, जो 140 से 190 वर्ष के बीच एक बार आता है।