सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जजों को निशाना बनाए जाने को लेकर नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि न्यायाधीशों को निशाना बनाने की भी एक सीमा है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि पिछली बार मामले को नहीं लिया जा सका, क्योंकि मैं कोविड की चपेट में था। समाचार रिपोर्टों में कहा गया है कि देश भर में ईसाई संस्थानों और पुजारियों पर बढ़ते हमलों का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई में देरी हो रही है। यह सब खबर कौन देता है?
सुप्रीम कोर्ट ने की मीडिया की आलोचना
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में देश भर में ईसाई संस्थानों और पुजारियों पर बढ़ते हमलों का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई हो रही थी। इसी पर टिप्पणी करते हुए बेंच ने कहा कि हमनें आनलाइन जो खबर देखी, वह यह थी कि जज सुनवाई में देरी कर रहे हैं, हमें एक ब्रेक दीजिए। एक न्यायाधीश कोविड पाजिटिव आए थे और यही कारण है कि हमने मामले को नहीं लिया। वैसे भी हम इसे सूचीबद्ध करेंगे अन्यथा एक और समाचार होगा।
ईसाई संस्थानों और पुजारियों पर होते हैं हिंसक हमले- वरिष्ठ अधिवक्ता
वरिष्ठ अधिवक्ता कालिन गोंजाल्विस ने जून में एक अवकाश पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया था और कहा था कि हर महीने देश भर में ईसाई संस्थानों और पुजारियों के खिलाफ औसतन 45 से 50 हिंसक हमले होते हैं। पीटर मचाडो और अन्य द्वारा दायर याचिका में मांगी गई राहत में शीर्ष अदालत द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का कार्यान्वयन शामिल है। जिसके तहत घृणा अपराधों पर ध्यान देने और प्राथमिकी दर्ज करने के लिए नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की जानी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में केंद्र और राज्यों को दिए थे निर्देश
बता दें कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए थे। इनमें फास्ट-ट्रैक ट्रायल, पीड़ित मुआवजा, निवारक सजा और ढीले कानून लागू करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शामिल थी। कोर्ट ने कहा था कि घृणा अपराध, गोरक्षा और पीट-पीट कर हत्या की घटनाओं जैसे अपराधों को जल्द से जल्द खत्म किया जाना चाहिए।

