याचिकाकर्ता विजय ठाकुर और विवेक शर्मा ने दलील दी कि प्रधानाचार्य पद के लिए जो योग्यता निर्धारित की है, वह भारतीय फार्मेसी परिषद और राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के बनाए नियमों के विपरीत है।
हाईकोर्ट ने तकनीकी शिक्षा विभाग में प्रधानाचार्य की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का नियम रद्द कर दिया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने मुख्य सचिव को आदेश दिए कि प्रधानाचार्य पद के लिए बनाए गए भर्ती एवं पदोन्नति के नियम सात में छह सप्ताह के भीतर जरूरी संशोधन करें। याचिकाकर्ता विजय ठाकुर और विवेक शर्मा ने नियम सात को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। दलील दी गई कि इस नियम के तहत प्रधानाचार्य पद के लिए जो योग्यता निर्धारित की है, वह भारतीय फार्मेसी परिषद और राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के बनाए नियमों के विपरीत है।
अदालत को बताया कि हिमाचल प्रदेश तकनीकी शिक्षा विभाग के बनाए इन नियमों के तहत प्रधानाचार्य पद के लिए 10 साल का शैक्षणिक अनुभव रखा गया है, जबकि भारतीय फार्मेसी परिषद की अधिसूचना के तहत 15 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव निर्धारित है। इसी तरह राष्ट्रीय शिक्षा परिषद ने भी कम से कम 15 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव निर्धारित किया है।
वहीं, तकनीकी शिक्षा विभाग ने अदालत को बताया कि वर्ष 2008 में बनाए गए भर्ती एवं पदोन्नति नियम को अवैध करार नहीं दिया जा सकता। यह नियम भारतीय फार्मेसी परिषद और राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के बनाए नियमों की तर्ज पर नहीं बनाए जा सकते हैं। ये दोनों ही संस्थाएं नियमों में समय-समय पर बदलाव करती रहती हैं।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि तकनीकी शिक्षा विभाग ने वर्ष 2008 में प्रधानाचार्य पद के लिए भर्ती एवं पदोन्नति नियम भारतीय फार्मेसी परिषद और राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के नियमों की तर्ज पर बनाए थे। उसके बाद जब इन दोनों संस्थाओं ने नियमों में जरूरी संशोधन किया तो उस स्थिति में तकनीकी शिक्षा विभाग को भी संशोधन करना चाहिए था।
अदालत ने कहा कि स्कूलों में शिक्षा के मानकों को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा परिषद को शिक्षक की योग्यता निर्धारित करने का अधिकार है। शिक्षकों की भर्ती के संबंध में मानदंडों और मानकों को निर्धारित करने के लिए इस संस्था का गठन किया गया है।