स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हिमाचल से गहरा लगाव था। उन्होंने सदा ही हिमाचल को अपना दूसरा घर माना। प्रीणी में अपना घर बनाने से पहले वाजपेयी मनाली में कई बार रूके। गर्मियों की छुट्टियों के दौरान उनका मनाली आना जब तक वह स्वस्थ रहे तब तक चलता रहा। यही वजह है कि उनके मनाली के लोगों से आत्मीय रिश्ते बन गये थे। लोग जहां उन्हें अपने घर का बड़ा बुजुर्ग मानते, तो बच्चे उन्हें मामा कह कर पुकारते।
प्रीणी के लोग आज भी वाजपेयी के जीवन की व यहां बिताये समय की यादें अपने दिलो दिमाग पर संजों कर रखे हैं। मनाली से हालांकि उनका पहले ही लगाव था। यह उनकी पसंदीदा जगह रही। लेकिन उनकी दत्तक पुत्री के विवाह के बाद वाजपेयी ने मनाली के पास प्रीणी में ही बसने का मन बना लिया। इस शादी के बाद ही उनका प्रीणी से लगाव और बढ़ा। उनके दामाद रंजन भट्टाचार्य हिमाचली हैं। रंजन के पिता व माता पेशे से डाक्टर होने के नाते हिमाचल में ही रहे। रंजन जिस होटल श्रंखला में काम करते थे। उसका एक होटल प्रीणी के पास ही है।
प्रीणी में उन्होंने गांव से बाहर मुख्य सड़क के साथ ब्यास नदी के किनारे छोटा सा घर बना रखा है, जहां वे हर साल गर्मी में आया करते थे। अपने प्रवास के दौरान वे यहां के लोगों से खूब प्यार से मिलते और कहते देखो मैं भी मनाली का ही हूं बाहर का मत समझना। गांव वाले भी उन्हें पलकों पर बिठाते। वाजपेयी जी पीएम थे तो गांव की सूरत भी संवरने लगी। गांव का स्कूल, महिला मंडल भवन से लेकर बिजली पानी रास्तों की व्यवस्था चाक चौबंद हो गई। अपने हर दौरे के दौरान वाजपेयी जी विशेष रूप से प्रीणी गांव का दौरा करने जरूर जाते। इसी चक्कर में प्रीणी के लिए सड़क भी बन गई थी। वहां वे तमाम सुरक्षा घेरे को तजकर बुजुर्गों, महिलाओं और गांव के युवाओं से मिलकर विभिन्न विषयों पर चर्चा करते। बच्चों से उनका स्नेह तो जग जाहिर है।
यह प्रीणी के लोगों का अपने नेता के प्रति असीम प्रेम का ही परिणाम था कि हर साल 25 दिसंबर को वाजपेयी जी के जन्म दिवस को प्रीणी के लोग आज भी धूमधाम से मनाते आये हैं। यह भी एक संयोग रहा कि वाजपेयी कभी भी अपने जन्मदिन पर प्रीणी में नहीं रहे, लेकिन स्थानीय लोग पूरे उत्साह के साथ उनका जन्मदिन मनाते चले आ रहे हैं। इसकी तैयारी हफ्ता भर पहले शुरू हो जाती। गांव में विशेष सजावट की जाती है और जन्मदिन वाले दिन यानी 25 दिसंबर को विशेष पूजा होती है। पूजा के बाद प्रीतिभोज दिया जाता है। बीच में जब भी अटल जी बीमार पड़े तो उनके स्वास्थ्य की कामना के लिए भी गांव वालों ने विशेष पूजा आयोजित की थी।
प्रीणी के लोग जब वाजपेयी जी के नेतृत्व में एनडीए सरकार रिपीट नहीं कर पाई थी। तो मई में चुनाव की हार के बाद अगले ही माह वाजपेयी जी प्रीणी पहुंचे तो एक अजीब सा सन्नाटा गांव में पसरा था, मानों कोई बड़ी अनहोनी हो गई हो। गांव वाले हालांकि हर बार की ही तरह परम्परागत वाद्य यंत्रों संग उनके स्वागत को नीचे सड़क पर पहुंचे थे लेकिन सबके मन में मायूसी तो थी ही। गाड़ी से उतरते ही वाजपेयी जी ने यह मायूसी भांप ली। करनाल ( स्थानीय शहनाई) बजाने वाले से बोले राम सिंह इस बार वो पहले वाली गर्मजोशी नहीं तेरी फूंक में। राम सिंह कुछ कहता तब तक वाजपेयी जी आगे बढ़ गए थे।
दो दिन बाद वाजपेयी जी पहले की तरह गांव के स्कूल गए। यहां समारोह हुआ, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी। बारी जब वाजपेयी जी की कविता की आई तो उन्होंने कहा। इस बार लम्बे समय के लिए फुरसत में आया हूं। कुछ नया लिखकर जाने से पहले सुनाऊंगा। वाजपेयी जी की एक और आदत थी की वे प्रीणी स्कूल के बच्चों को पार्टी के लिए हर बार अपनी जेब से कुछ पैसे जरूर देते थे। जब उन्होंने भाषण दिया तो बोले इस बार बड़ी पार्टी की जगह जलेबी से काम चला लेना पैसे थोड़े कम मिलेंगे। क्योंकि तुम्हारे मामा की नौकरी चली गई है। इसलिए जेब तंग है। उन्होंने बच्चों को पांच हजार दिए। उनकी यह बात सुनकर बच्चे स्तब्ध रह गए। सरकारों से कोई सरोकार न रखने वाले बच्चों को शायद नौकरी की अहमियत पता थी। बच्चों की मासूमियत देखिए उन्होंने वे पैसे लेने से इंकार कर दिया और बोले जब नई नौकरी लगेगी तब डबल लेंगे। हालांकि वाजपेयी जी ने यह कहकर उन्हें मना लिया की इतना तो रख ही लो वर्ना मामा को अच्छा नहीं लगेगा।