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जगजीत सिंह के फैन के लिए बेशकीमती तोहफा है राजेश बादल की किताब ‘कहां तुम चले गए’

उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, रईसों की महफिलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती गज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय जगजीत सिंह को जाता है. जगजीत का बचपन का नाम जीत था. करोड़ों सुनने वालों के चलते वे जग को जीतने वाले जगजीत बन गए.

गज़ल का नाम लेते ही जेहन में नाम आता है जगजीत सिंह का. जगजीत सिंह को इस दुनिया से गए तीन महीने बाद ग्यारह साल हो जाएंगे मगर लगता ही नहीं कि वे इस संसार में नहीं है. क्योंकि, हर दूसरे-तीसरे दिन उनकी आवाज में गाई गज़ल सुनने या गुनगुनाने को मिल जाती है. ऐसे में जब वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार राजेश बादल अपनी किताब का नाम ‘कहां तुम चले गए: दास्तान-ए-जगजीत’ लिखते हैं तो मन में ऐतराज सा जागता है और दिल कहता है जगजीत कहीं नहीं गए. वे यहीं हैं.
जगजीत सिंह की जिंदगी से जुड़े किस्सों की ऐसी किताब की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी. क्योंकि, जगजीत सिंह ने गज़ल को प्राइवेट पार्टियां और कुछ खास लोगों की बैठक से निकाल कर बड़े मंच और फिल्मी परदे तक पहुंचाया. फिर आम जनता के इस प्रिय गायक की जिंदगी पर लिखा-पढ़ा जाने लायक इतना कम क्यूं हैं? यह किताब इस कमी को कुछ हद तक पूरी करती है.
राजस्थान के श्रीगंगानगर के सिख अमर सिंह और बच्चन कौर के सात बच्चों के परिवार में आठ फरवरी, 1941 को जगमोहन का जन्म होता है. जिसका नाम परिवार के गुरुजी के कहने पर जगजीत सिंह हो जाता है. और यही जगजीत श्रीगंगानगर से स्कूली पढ़ाई कर कॉलेज में पढ़ने जालंधर जाता है. और बाद में मुंबई पहुंचकर फिल्मों में गायन में किस्मत आजमाते-आजमाते फिल्म और गायकी की दुनिया में बेशुमार नाम कमाता है.
जगजीत सिंह को उनके पिता ने बचपन से ही गुरबानी और शबद गाने के लिए शास्त्रीय संगीत की शिक्षा और संस्कार डलवाए थे. यही वजह थी कि जब जगजीत की गायकी की रेंज बहुत विस्तृत और कई दफा चौंकाने वाली होती है. लोग कहते हैं कि इस जगजीत को तो हमने पहले कभी सुना ही नहीं.

जगजीत सिंह के मुंबई के संघर्ष के किस्से, उस दौर के साथी, उनसे किए वादे, सभी कुछ को इस किताब में अच्छे से पिरोया गया है. लेखक ने बताया है कि उस दौर के सभी बड़े कलाकार जगजीत को अपने घर की प्राइवेट पार्टियों में गवाने के लिए तो बुलाते थे मगर काम नहीं देते थे. जगजीत ने मुंबई में अपने शुरुआती दिन इन्हीं पार्टियों में गाकर नाच कर गुजारे. वह अपने दोस्तों से कहते थे, ‘यार ऐसी पार्टियों में इसलिए जाता हूं कि खाना-पीना मिल जाता है और बड़े लोगों से पहचान बढ़ जाती है मगर काम मिलना कठिन होता है.’

मगर उनकी प्रतिभा ज्यादा दिन छिपी नहीं रह सकी. पहले कुछ फिल्मों के गाने एक-दो फिल्म में थोड़ा-बहुत काम और बाद में जब वे गज़ल की दुनिया में उतरे तो जग जीत कर ही लौटे. जगजीत को गुलजार गज़लजीत सिंह ही कहा करते थे.

इस किताब में जगजीत सिंह के पारिवारिक जीवन के सुख-दुख का भी बेहद संजीदगी से चित्रण किया गया है. चित्रा से मुलाकात, चित्रा की पुरानी जिंदगी, इस जोड़ी के जवान बेटे विवेक की मौत के बाद परिवार में आया गम और उस गम से उबरना जगजीत सिंह की जिंदगी के इन उतार-चढाव को भी लेखक ने विस्तार से लिखा है जो कई जगह दिल को छू जाता है.

जगजीत सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि यही रही कि उन्होंने गज़ल गायकी में खूब सारे प्रयोग कर उसे इतना आसान और कर्णप्रिय कर दिया कि अमीरों की गज़ल आम जनता की हो गई. जगजीत के सारे अलबमों की खासियत उनकी आसान और सुरीली गज़लें रहीं जो आज भी गुनगुनाई जा रही हैं.

इस किताब में जगजीत की गायकी के अलावा उनकी ज़िंदादिली और उदारता के भी किस्से हैं. जगजीत कैसे मुंबई की सड़कों पर मदद करने निकलते थे और बेटी की शादी के नाम पर कार्यक्रम का निमंत्रण देने वालों को मिठाई के डिब्बे में रुपये देकर विदा कर देते थे. जगजीत सिंह का हॉर्स रेसिंग का प्रेम, उनके नए गायकों और शायरों से रिश्तों की भी इस किताब में विस्तार से चर्चा की गई है.

राजेश बादल ने जगजीत की जिंदगी से जुडे़ अनेक लोगों से मिलकर जो किस्से-कहानियां जुटाई हैं वे इस किताब की जान हैं. जगजीत सिंह के पुराने रिकॉर्डस और अलबम के बारे में भी लेखक ने अच्छी जानकारी जुटाई है.

दरअसल, लेखक राजेश बादल ने अपने राज्यसभा टीवी के दिनों में जगजीत सिंह पर जब फिल्म बनाई थी उस दौरान हुई उनकी रिसर्च इस किताब के काम आई और इस किताब की भाषा भी बहुत कुछ चित्र वाली है. इस किताब में जगजीत सिंह की जिंदगी से जुडे़ कुछ अच्छे और दुर्लभ फोटोग्राफ भी हैं. राजेश बादल की यह किताब ‘कहां तुम चले गए’ जगजीत सिंह के चाहने वालों के लिए बेशकीमती तोहफे से कम नहीं है.

किताब- कहां तुम चले गए: दास्तान-ए-जगजीत
लेखक- राजेश बादल
प्रकाशक- मंजुल पब्लिशिंग हाउस

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