अदालत से जमानत
अदालत से जमानत मिलने के बावजूद विचाराधीन कैदियों को रिहा करने में देरी होने पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है। अदालत ने हिमाचल में भी ई-जेल सॉफ्टवेयर शुरू करने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनुपालना असम, झारखंड, तेलंगाना और गुजरात ने शुरू कर दी है। हिमाचल प्रदेश सहित पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गोवा राज्यों के लिए अदालत ने ई-जेल सॉफ्टवेयर शुरू करने के आदेश दिए हैं। जमानत मिलने के बावजूद कैदियों को रिहा करने में हो रही देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है।
कोर्ट मित्र ने अदालत को बताया कि राज्यवार आंकड़े बताते हैं कि कुल विचाराधीन कैदियों की सूची तैयार कर दी गई है। इनमें ऐसे कई कैदी हैं, जिन्हें जमानत दी गई लेकिन अन्य मामले दर्ज होने के कारण रिहा नहीं किया गया। आकड़ों के अनुसार 5362 विचाराधीन कैदियों की जमानत की गई थी। इनमें 2129 को रिहा किया गया है, जबकि 600 को एक से अधिक मामले दर्ज होने के कारण रिहा नहीं किया गया। इसके अलावा 582 विचाराधीन कैदियों की याचिकाएं अदालत के समक्ष लंबित हैं। अदालत ने एनआईसी को ऐसा ई-जेल सॉफ्टवेयर बनाने के आदेश दिए थे, जिसमें जेल विभाग जमानत देने और रिहाई की तारीख को दर्ज कर जाए।
यदि कैदी को जमानत के बाद सात दिन के भीतर रिहा नहीं किया जाता है तो फिर एक स्वचालित ईमेल सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को भेजा जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को आदेश दिए थे कि जमानत की प्रति उसी दिन विचाराधीन कैदी को ई-मेल के माध्यम से भेजी जाए। सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को आदेश दिए गए थे कि कैदियों की आर्थिक स्थिति के बारे में अदालत को अवगत करवाया जाए, ताकि मुचलके की राशि आर्थिक स्थिति के हिसाब से तय की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के बावजूद रिहाई में देरी का एक और कारण पाते हुए कहा कि अदालतें अभियुक्त की रिहाई के लिए स्थानीय जमानती की शर्त लगाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को सुझाव दिया कि अभियुक्त की रिहाई के लिए स्थानीय जमानती की शर्त न लगाई जाए।