राजधानी शिमला के रिज मैदान पर स्थित क्राइस्ट चर्च देश ही नहीं विदेश में भी अपनी विशेष पहचान रखता है। शिमला घूमने आने वाले पर्यटक इस चर्च को देखने जरूर जाते हैं। क्रिसमस की तैयारियों के लिए चर्च को सजाने का काम शुरू हो गया है। चर्च की दिवारों पर इन दिनों रंग रोगन किया जा रहा है। इसके अलावा मरम्मत का काम भी चल रहा है। चर्च में 150 साल पुरानी एक बैल (घंटी) है। इसे प्रार्थना से पहले बजाया जाता है। इन दिनों इस घंटी की मरम्मत का कार्य भी किया जा रहा है।
इन पाइप पर संगीत के सात सुर की आती है ध्वनि
यह बैल कोई साधरण घंटी नहीं बल्कि मैटल से बने छह बड़े पाइप के हिस्से हैं। इन पाइप पर संगीत के सात सुर की ध्वनि आती है। इन पाइप पर हथौड़े से आवाज होती है, जिसे रस्सी खींचकर बजाया जाता है। यह रस्सी मशीन से नहीं, बल्कि हाथ से खींचकर बजाई जाती है। हर रविवार सुबह 11 बजे होने वाली प्रार्थना से पांच मिनट पहले बजाई जाती है। ईसाइ समुदाय के लोगों को प्रार्थना शुरू होने वाली है इसकी सूचना देने के लिए इसे बजाया जाता है। क्रिसमस और न्यू ईयर के मौके पर रात 12 बजे इस बेल को बजाकर जश्न मनाया जाता है। चर्च के इंचार्ज सोहन लाल ने कहा कि इसे मरम्मत किया जा रहा है। हर रविवार को प्रार्थना से पंद्रह मीनट पहले इसे बजाया जाता है।
साल 1982 में खराब हो गई थी बेल
9 सितंबर 1844 में इस चर्च की नींव कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन ने रखी थी। 1857 में इसका काम पूरा हो गया। स्थापना के 25 साल बाद इंग्लैंड से इस बैल को शिमला लाया गया था। 1982 में यह बैल खराब हो गई थी। उस वक्त अंग्रेजों के आवास शहर में अलग अलग स्थानों पर होते थे। बैल के माध्यम से सूचित किया जाता था कि प्रार्थना शुरू होने वाली है। इसकी आवाज तारादेवी तक सुनाई देती थी। चूंकि उस वक्त शहर में आबादी कम थी और शोर शराबा भी नहीं था। यह बैल कई सालों से खराब थी। वर्ष 2019 में इसे रिपेयर करवा कर दोबारा बजाया गया था। अब इसकी कुछ तारे व नट टूट गए थे जिन्हें दोबारा से ठीक किया गया। चर्च प्रबंधन का कहना है कि इसकी आवाज रिपेयर के बाद बढ़ जाएगी।