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सर्दियों में 70 प्रतिशत कम हुई वर्षा, यह होंगे दूरगामी परिणाम; यह हैं कारण

शिमला जलवायु परिवर्तन का असर देवभूमि हिमाचल में भी देखने को मिल रहा है। इसी का परिणाम है कि सर्दियों में इस बार तीन माह नवंबर, दिसंबर व जनवरी में करीब 70 प्रतिशत कम वर्षा हुई है। जनवरी में फिर भी कुछ जिलों में स्थिति बेहतर हुई है, लेकिन सात जिलों में सामान्य से कम वर्षा हुई। वर्षा व हिमपात में लगातार कमी आ रही है। दिसंबर और जनवरी में बहुत कम हिमपात हुआ है। इन्हीं दो माह में बेहतर हिमपात हो तो जून तक जमा रहता है।

63 प्रतिशत कम वर्षा दर्ज की गई

फरवरी और मार्च में गिरी बर्फ जल्दी पिघल जाती है। इस शीतकाल में कई जिलों में सामान्य से 31 से लेकर 63 प्रतिशत कम वर्षा दर्ज की गई है। जबकि, शिमला सहित अन्य क्षेत्रों में बहुत कम बर्फ गिरी। हालांकि, जनवरी में अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हिमपात हुआ है, लेकिन निचले क्षेत्रों के किसान-बागवान चिंतित हैं। विज्ञानी इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन को मान रहे हैं।

इसका असर लगातार देखने को मिल रहा है। एक से दो दशक पूर्व तक कई-कई दिन तक रिमझिम वर्षा होती थी, इससे भूजल का स्तर बेहतर होता था, लेकिन अब झमाझम बारिश और बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं। मौसम विभाग शिमला के निदेशक सुरेंद्र पाल ने बताया कि इस बार कई क्षेत्रों में हिमपात न के बराबर हुआ है।

क्या होंगे दूरगामी परिणाम और क्या हैं कारण

जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धी हो रही है। कम व समय पर बर्फबारी न होने से बर्फ जल्दी पिघल रही है। बर्फ के अधीन क्षेत्र के घटने से नदियों में पानी की कमी से विद्युत उत्पादन प्रभावित हो सकता है। जिस कारण पेयजल व सिंचाई योजना प्रभावित होंगी। भू-जल स्तर में भी गिरावट आएगी। प्राकृतिक आपदाओं का कारण ग्लेशियर बनेंगे।

जलवायु परिवर्तन का 90 प्रतिशत कारण मनुष्य

जलवायु परिवर्तन का 90 प्रतिशत कारण मनुष्य है और औद्योगिकरण, पेड़ों का कटान, संसाधनों का बहुत अधिक दोहन तापमान को लगातार बढ़ा रहा है। ग्रीन हाउस गैसें विशेष रूप से कार्बन डाइआक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और नाइट्रस आक्साइड में वृद्धि हो रही है। सबसे अधिक प्रभाव शिमला के तापमान में देखने को मिला है।

पर्यावरण से छेड़छाड़ व प्रदूषण का असर

विज्ञानियों के अनुसार पर्यावरण से छेड़छाड़ और प्रदूषण का असर ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। कुछ वर्षों की अपेक्षा 2022 में ज्यादा ग्लेशियर पिघलने के प्रमाण मिले हैं। हिमालय पर्वत तो हिमाचल के साथ भारत और विश्व के लिए संजीवनी का कार्य करता है, उस पर भारत और विश्व के विज्ञानी लगातार निगरानी रख रहे हैं। हमेशा बर्फ से ढकी रहने वाली चोटियों में नौ से 23 प्रतिशत तक बर्फ कम हुई है।

कई जिलों में 2 मिमी भी नहीं हुई वर्षा

नवंबर की स्थिति प्रदेश में नवंबर 2022 में पांच जिलों ऊना, सिरमौर, सोलन, बिलासपुर और हमीरपुर में दो मिलीमीटर भी वर्षा नहीं हुई है। ऊना जिला में तो नवंबर में एक मिलीमीटर वर्षा भी नहीं हुई। 2005 से लेकर नवंबर 2022 तक हुई वर्षा का आकलन किया जाए तो केवल सात वर्षों में 10 से 12 मिलीमीटर वर्षा को छोड़ बाकी 10 वर्ष सूखे जैसी स्थिति का लोगों को सामना करना पड़ा है।

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