सबकुछ साधना है तो
एकै साधे सब सधै सब साधे सब जाय। यानी एक काम (या लक्ष्य) को मन लगाकर करने से बाक़ी सारे काम भी हो जाते हैं, जबकि सारे कामों को एक साथ करने की कोशिश से कुछ भी नहीं हो पाता। जैसे, केवल जड़ को सींचने से भी पेड़ फल-फूल से भरपूर होता है। यहां पर सूत्र है एक काम या लक्ष्य को पूरा करना।
सनातन धर्म सभा डिपो बाजार धर्मशाला में शिव तत्व ज्ञान महायज्ञ के उपलक्ष्य में महाशिव पुराण कथा का सार तत्व व प्रवचन के दूसरे दिन श्रद्धालुओं को खूब भीड़ उमड़ी। पुनीत गिरी जी महाराज ने श्री शिव पुराण कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन शिवाराधना का महत्व व विधि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि शिव पुराण को पढऩा किसी पोथी को पढऩा नहीं,साक्षात शिव को पढऩा है। इसे सुनना शिव को ही सुनना है और इसका गायन करना शिव का ही गायन करना है। इसके लिए कृपा तो भगवान की ही होती है। मगर इच्छा और प्रयत्न तो स्वयं का ही होता है और होना भी चाहिए। हमें भगवत कृपा से मानव देह मिला तो कम से कम भगवद् प्राप्ति की इच्छा तो हमें होनी चाहिए अन्यथा प्रयत्न भी क्यों करेंगे? और इसी प्रयत्न का प्रथम चरण है उन महापुरुषों के पास पहुंचना जहां हमें भक्ति की साधना मिलेगी, हम तदनुरूप करेंगे।
इन संत वाणियों को ग्रंथों के रूप में संतों का संग ही मानना चाहिए और ढंग से इन ग्रंथों का पठन-पाठन कर जीवन में धारण करना चाहिए। तभी जीवन परिवर्तन होगा। वह होगा जो हो जाना चाहिए। यदि हम स्वयं को बदल न पाए, जीवन शैली सकारात्मक न कर पाए, तब केवल पढऩे-सुनने का कोई लाभ न होगा। पुनीत गिरी जी महाराज ने कहा कि शिवाराधना का उद्देश्य जीवन में सदाचार, बुद्धि में विवेक और हृदय में सद्भक्ति का हो जाना है, किंतु यह सब तभी होगा, यदि पूजा को पूजा के ढंग से करेंगे। एक आराधना करने वाले साधक के लिए शिव पुराण में सूत जी महाराज ने ऋषियों को 2 सूत्र दिए हैं। प्रथम तो जिस भी इष्ट के रूप में आप प्रभु की आराधना करते हो, आपको उसका तत्व से ज्ञान होना चाहिए और दूसरा सूत्र यह है कि हमें शिव जैसा होकर ही शिव की आराधना करने के पात्र हो सकते हैं। शिव सहज हैं और निर्मल अंत:करण वाले हैं। एक निर्मल हृदय वाले के भीतर ही भक्ति रस प्रवाहित हो सकता है तथा एक निर्मल अंत:करण वाला ही निरपराध हो सकता है। समाज को निरपराध बनाने के लिए मन को पापमुक्त अवश्य करना होगा।