याचिका में लगाया था आरोप
याचिका में आरोप लगाया गया था कि 28 फरवरी 2020 को सरकार ने निर्णय लिया था कि याचिकाकर्ताओं की अनुबंध सेवा को वेतन निर्धारण के लिए नहीं गिना जाएगा। प्रदेश हाईकोर्ट ने नियमितीकरण और वेतन निर्धारण के मामले में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने कहा है कि अनुबंध नियुक्ति को नियमितीकरण के लिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। खंडपीठ ने कैबिनेट के निर्णय को निरस्त करते हुए सरकार को वेतन निर्धारण करने के आदेश दिए हैं। याचिकाकर्ता पंकज कुमार और अन्य की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए अदालत ने यह निर्णय सुनाया।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि 28 फरवरी 2020 को सरकार ने निर्णय लिया था कि याचिकाकर्ताओं की अनुबंध सेवा को वेतन निर्धारण के लिए नहीं गिना जाएगा। सभी याचिकाकर्ताओं को अनुबंध के आधार पर पशु चिकित्सा अधिकारी नियुक्त किया गया था। अदालत को बताया गया कि सरकार ने वर्ष 1998 से 2003 तक पशु चिकित्सा अधिकारी के पदों को इसी तरह से भरा। इसके बाद पहली बार वर्ष 2010 में इन पदों को चयन आयोग की सिफारिशों के तहत भरना शुरू किया। दलील दी गई कि वित्त विभाग की ओर से एक सितंबर 1998 को जारी अधिसूचना के तहत पशु चिकित्सा अधिकारियों की उनकी सेवा अवधि के अनुसार वेतन का निर्धारण तय किया जाना था। आरोप लगाया कि सरकार ने वेतन निर्धारण करते समय याचिकाकर्ताओं की अनुबंध पर दी गई सेवा को नहीं गिना है।
सरकार की ओर से दलील दी गई कि चिकित्सा अधिकारियों की तर्ज पर पशु चिकित्सा अधिकारियों को वित्त विभाग की ओर से एक सितंबर 1998 को जारी अधिसूचना के तहत लाभ नहीं दिया जा सकता। पशु चिकित्सा अधिकारी पशुओं और चिकित्सा अधिकारी मनुष्यों का इलाज करते है। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अपने निर्णय में कहा कि सरकार का यह फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रावधानों के विपरीत है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को तीन महीनों के भीतर सभी वित्तीय लाभ अदा करने के आदेश दिए हैं।