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मैक्लोडगंज : निर्वासित तिब्बतियों ने लोसर उत्सव पर तिब्बत की देवी पाल्डेन ल्हामो की आराधना कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की 

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खबर आजतक, धर्मशाला ब्यूरो 

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के मैक्लोडगंज में रह रहे निर्वासित तिब्बतियों ने लोसर उत्सव के तीसरे दिन तिब्बत की देवी पाल्डेन ल्हामो की आराधना कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए और बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए विशेष प्रार्थना की। तिब्बत के स्टेट ओरेकल नेचुंग की उपस्थिति में उनकी पूजा की गई। नेचुंग ओरेकल दूसरे दलाई लामा के बाद से दलाई लामा का व्यक्तिगत दैवज्ञ है। नेचुंग ओरेकल तिब्बत में नेचुंग मठ के नामित प्रमुख हैं। लोसर उत्सव में पहले तीन दिन बड़े महत्वपूर्ण होते हैं। पहले दिन तिब्बती लोगों ने लोकगीत गाते हुए पारंपरिक परिधानों के साथ अपने ईष्ट देव के मंदिर में पूजा की। इस दिन को दीपावली जैसा माहौल होता है। दुख, रोग एवं अशांति को नष्ट करने के लिए लोग एक जगह पर इकट्ठा होकर प्राथना करते हैं।

दूसरे दिन दशहरा के तौर पर मनाया जाता है। इसमें गंगाजल से आटा गूंथकर गणेश की प्रतिमा बनाई जाती है और मूर्ति को छांग (जौ की बियर), चावल व आटे का भोग लगाया जाता है। त्यौहार के अंतिम दिन आटे की होली खेली जाती है और इसके लिये धान्य की कामना की जाती है। इस दिन लोग धार्मिक आस्था के प्रतीक पुराने झंडो को जमीन में गाड़कर नये झंडे फहराते हैं और लम्बी उम्र और समृद्धि की कामना करते हैं। सामूहिक भोज और पारंपरिक डांस हैं मुख्य आकर्षण यह दिन लोसार महोत्सव के मुख्य समारोहों का अंतिम दिन होता है।

 

इस दिन लोग एक री-यूनियन भोज का आयोजन करते है, वो आपस में मिलते हैं और एक खास तरह का केक जिसे काप्स कहते है, उसका सेवन छांग (जौ की बियर) एक मादक पेय, जिसे गर्म रखने के लिए सेवन करते हैं। इस त्योहार का सबसे मुख्य आकर्षण होते हैं पारंपरिक डांस, जो लोग इस दौरान करते हैं। इसमें डांस करने वाले लोग कुछ खास किस्म के रंगीन और चमकीले कपड़े पहनते हैं और अपने चेहरे पर दानव या किसी पशु का मुखौटा पहनते है। यह डांस दुनियाभर के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनते हैं।

मेथो समारोह की विशेषताएं

“मेथो” समारोह तिब्बती लोगों द्वारा किया जाने वाला मुख्य कार्यक्रम है जिसमें वे जलती हुई मशालें ले जाते हैं और बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए विशेष प्रार्थना करते हैं। इस त्योहार के दौरान तिब्बत की देवी पाल्डेन ल्हामो की आराधना की जाती है। इस दिन लोग अपने परिवार के सदस्यों की कब्र पर भी जाते हैं। अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते थे। पवित्र मंत्रोच्चारण और पवित्र अग्नि की रोशनी मेथो समारोह की विशेषताएं हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह नकारात्मक ऊर्जा को भगाने और विभिन्न नारों के उच्चारण और अगरबत्ती जलाने के साथ अच्छी आत्माओं का स्वागत करता है।

लोसर उत्सव का इतिहास

लोसर उत्सव के इतिहास की बात करें तो आज भले ही यह तिब्बती बौद्ध धर्म का त्योहार लगता है लेकिन तिब्बती इलाके में इस त्योहार का इतिहास बुद्धिज्म़ के आने से पहले का है। इतिहास पर अगर गौर करें तो लोसर फैस्टिवल की जड़े हमें यहां के पुराने बॉर्न धर्म से जुड़ी हुई मिलती हैं, जिसमें ठंड के दिनों में धूप जलाने का रिवाज हुआ करता था। बताया जाता है कि, नौवें तिब्बती राजा, पुड गुंग्याल के शासनकाल के दौरान इसी रिवाज़ को वार्षिक त्यौहार बनाने के लिए इसे एक फसल त्योहार के साथ मिला दिया गया। बैशाखी, पोंगल आदि की तरह ही लोसर में भी फसल के लिए आभार व्यक्त किया जाता है। लोसार का बाद में तिब्बत में आई बौद्ध परंपरा की ओर झुकाव हो गया। ऐसा माना जाता है कि, पुड गुंग्याल के शासनकाल के दौरान बेल्मा नाम की एक बूढ़ी औरत हुआ करती थी, जो लोगों को चंद्रमा के आधार पर समय की गणना करना सिखाती थी। उस विश्वास के साथ, कुछ स्थानीय लोग लोसार को बाल ग्याल लो के रूप में संदर्भित करते हैं। लोसार को मनाने की तिथि हर साल बदलती है और कभी कभी सेम डेट को भी पड़ जाती है।

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