बड़े शहरों में
देश के बड़े शहरों के लोग इस साल हिमाचल की रसीली चेरी का स्वाद नहीं ले पाएंगे। मौसम की मार से इस साल प्रदेश में सामान्य के मुकाबले महज 15 से 20 फीसदी ही चेरी का उत्पादन हुआ है। सर्दियों में पर्याप्त बारिश, बर्फबारी न होने से जहां चेरी पर सूखे की मार पड़ी है, वहीं इन दिनों बारिश और ओलावृष्टि से तापमान में गिरावट के चलते फसल को नुकसान पहुंचा है। इस साल चेरी सीजन करीब दो हफ्ते लेट है। हिमाचल से चेरी दिल्ली होते हुए मुंबई, कोलकाता, बंगलूरू और गुजरात तक भेजी जाती है। हिमाचल में सबसे अधिक चेरी उत्पादन शिमला जिले के नारकंडा, कोटगढ़, बागी, मतियाना, कुमारसैन और थानाधार में होता है। ननखड़ी की चेरी बाजार में आनी शुरू हो गई है।
उत्पादन कम होने के चलते सीजन की शुरुआत में बागवानों को रिकाॅर्ड रेट मिल रहे हैं। ननखड़ी खड़ेला के चेरी उत्पादक राज मेहता का कहना है कि हर साल करीब 1200 बॉक्स चेरी उत्पादन होता था, इस साल 200 बॉक्स उत्पादन भी मुश्किल है। नारकंडा के जाने माने चेरी उत्पादक अजय कैंथला का कहना है कि लो हाइट में 10 से 15 फीसदी ही फसल है। हाइट में भी बारिश से तापमान गिरा है, जिससे फ्लावरिंग प्रभावित हो रही है। ज्यादा बारिश से फ्रूट क्रेकिंग की समस्या हो सकती है। हिमाचल में सालाना 700 से 800 मीट्रिक टन चेरी पैदा होती है, इसमें 70 से 80 फीसदी चेरी शिमला जिले में होती है।
चेरी का सालाना 150 से 200 करोड़ का कारोबार होता है। इतनी चेरी तो दिल्ली में ही खप जाएगी इस साल सामान्य के मुकाबले सिर्फ 15 से 20 फीसदी ही चेरी उत्पादन हुआ है। इतनी चेरी दिल्ली में ही खप जाती है, अन्य राज्यों में हिमाचल की चेरी पहुंचेगी, इसमें संशय है। जम्मू कश्मीर की चेरी का सीजन देरी से शुरू होता है। चिल्ली की चेरी का आयात भी ऑफ सीजन में होता है।- दीपक सिंघा, संस्थापक, स्टोन फ्रूट ग्रोवर्स एसोसिएशन चेरी की फसल पर मौसम की मार मौसम अनुकूल न रहने के कारण चेरी के उत्पादन में कमी की सूचना है। सर्दी में पर्याप्त बारिश-बर्फबारी नहीं हुई, जिससे फसल को नुकसान पहुंचा है। अधिक बारिश से भी चेरी की फसल प्रभावित हो सकती है। – डॉ. डीआर शर्मा, संयुक्त निदेशक, बागवानी विभाग