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पानी, मिट्टी और हवा में मौजूद प्लास्टिक के छोटे कण बीमार कर रहे हैं। इनसे पाचन तंत्र बिगड़ रहा है। शरीर में सूजन हो रही है और कोशिकाएं भी नष्ट हो रही हैं। कुछ बोतलबंद पानी समेत अन्य वस्तुओं पर हुए शोध में यह खुलासा हुआ है। यह माइक्रोप्लास्टिक्स पॉलीएथिलीन इलीन टेरेफ्थेलेट, पॉलीस्टाइरीन, पॉलीप्रोपाइलीन और पॉलीविनाइल क्लोराइड पाए गए हैं। यह शोध सीएसआईआर नागपुर के वेस्ट रिप्रोसेसिंग डिविजन, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर, यूनिवर्सिटी मलेशिया पहांग, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी मोहाली, जेपी यूनिवर्सिटी वाकनाघाट और शूलिनी विश्वविद्यालय सोलन ने किया है। इस अध्ययन में जेपी यूनिवर्सिटी वाकनाघाट से अशोक कुमार नड्डा, शूलिनी विश्वविद्यालय सोलन से प्रदीप सिंह, पंकज रायजादा आदि ने भी हिस्सा लिया। इससे संबंधित शोध पत्र ‘साइंस डायरेक्ट’ नाम के अंतरराष्ट्रीय जर्नल में छपा है।
इस शोध के अनुसार सिंथेटिक प्लास्टिक जो हल्के, टिकाऊ, लोचदार, मोल्डेबल, सस्ते और हाइड्रोफोबिक होते हैं, मूल रूप से मानव सुविधा के लिए आविष्कार किए गए थे। हालांकि, उनकी गैर-बायोडिग्रेडेबिलिटी और एक खतरनाक दर पर निरंतर संचय के साथ-साथ यांत्रिक और भौतिक-रासायनिक गिरावट के माध्यम से माइक्रो, नैनो प्लास्टिक स्केल संरचनाओं में रूपांतरण जीवित प्राणियों, जीवों और पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण खतरा पैदा करता है। पानी, मिट्टी और हवा में पाए जाने वाले प्लास्टिक के विभिन्न छोटे रूप जीवित कोशिकाओं में प्रवेश कर रहे हैं। उच्च तापमान और परिवेश की आर्द्रता सूर्य के प्रकाश या यूवी-बी विकिरणों के तहत फोटो-उत्प्रेरक रूप से प्लास्टिक पॉलीमर की गिरावट क्षमता को बढ़ाती है।