पहाड़ी गाय की नस्ल
हिमाचल की पहाड़ी गाय को अब नए नाम गौरी से जाना जाएगा। राज्य सरकार ने प्रदेश की पहाड़ी नस्ल की गाय का नया नामकरण कर दिया है। सरकार ने गौरी नाम से इस गाय का पंजीकरण करवा दिया है। अब सरकार इस गाय के संरक्षण और नस्ल सुधार पर काम करेगी।
इनके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए सिरमौर जिले के बागथन गांव में 4.64 करोड़ रुपये की लागत से 137.17 बीघा जमीन पर जल्द प्रोजेक्ट तैयार होगा। निदेशालय स्तर पर इस प्रोजेक्ट के लिए प्रस्तावित बजट की मंजूरी मिल चुकी है। यहां प्रदेशभर से गिनी-चुनी 30 गाय और 20 बछड़ियां रखी जाएंगी। इनसे बछड़े तैयार करके उनका सीमन पहाड़ी गायों की नस्ल सुधाल के लिए हर जगह पशुपालकों के लिए उपलब्ध होगा।
प्रदेश में अभी पहाड़ी गाय की संख्या 7.59 लाख है, जो कुल पशुओं का 41.52 फीसदी है। बता दें कि हिमाचल की पहचान छोटे कद की गाय को राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो ने देश की मान्यता प्राप्त नस्लों की सूची में शामिल किया है। नेशनल ब्यूरो में देशी नस्ल की अन्य गाय जैसे साहिवाल, रेड सिंधी, गिर सरीखी विख्यात नस्ल के साथ हिमाचल की पहाड़ी गाय भी शामिल हुई है।
पहाड़ी बछड़े का सीमन प्रभावशाली
पहाड़ी गाय के बछड़े से तैयार सीमन का उपयोग अधिक प्रभावशाली होगा। अमूमन अभी तक पहाड़ी गाय को बाहरी सीमन लगाया जा रहा है, इससे जान को भी खतरा बना रहता है क्योंकि, कद-काठी छोटी होने और गर्भाश्य में भ्रृूण का आकार बड़ा होने से डिलीवरी के दौरान काफी दिक्कतें आती हैं। वहीं बांझपन का खतरा भी बना रहता है।
ये भी है खासियत
ये नस्ल अपने बेहतरीन गुणों के कारण अलग महत्त्व रखती है। इसके दूध में न केवल औषधीय गुण हैं, बल्कि गोमूत्र भी खेती के लिए लाभदायक है। पहाड़ी गाय अन्य नस्लों से कई तरह से भिन्न है। इसका कद दूसरी गायों से काफी छोटा है। इन्हें ज्यादा पानी पिलाने या फीड की जरूरत नहीं पड़ती। दूसरी गायों की तुलना में इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी ज्यादा है।
प्रोजेक्ट पर काम शुरू
पहाड़ी गाय की नस्ल में सुधार और संरक्षण को लेकर मंजूर हुए प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो चुका है। यह 4.64 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट है, जहां 50 गाय और बछड़ियां रखी जाएंगी। यहां बछड़े तैयार करके उनके सीमन से नस्ल सुधारी जाएगी। इसको लेकर वैज्ञानिक स्तर पर शोध भी जारी है। –