नगर निगम के चुनाव
ब्रिटिशकाल में अस्तित्व में आ चुके हिमाचल प्रदेश के सबसे पुराने नगर निगम के चुनाव मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू और पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गए हैं। इन चुनावों में अगर कांग्रेस जीती तो सीएम सुखविंद्र सिंह सुक्खू की साख और बढ़ेगी। भाजपा जीतती है तो जयराम ठाकुर के सिर पर ही इसका सेहरा बंधेगा। नगर निगम शिमला के यह चुनाव लंबे विवाद के बाद होने जा रहे हैं। भाजपा सरकार के समय विधानसभा चुनाव से पहले यह लगातार आगे टलते रहे।
नगर निगम शिमला के यह चुनाव 34 वार्डों में हो रहे हैं। मेयर और डिप्टी मेयर का चयन जीते हुए पार्षदों में से ही किया जाएगा। यह चुनाव जून 2022 में प्रस्तावित थे, मगर इस बीच नगर निगम के वार्डों की संख्या को 34 से बढ़ाकर 41 करने का प्रस्ताव लाया गया। इसे अदालत में चुनौती दी गई तो यह विवाद विधानसभा चुनाव से पहले नहीं सुलझ पाया, जबकि इसे लिटमस टेस्ट माना जा रहा था। चुनाव आगे सरके तो अब यह भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए इसलिए चुनौती होंगे क्योंकि इससे वर्ष 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव के लिए भी संदेश जाएगा। इससे पहले नगर निगम शिमला पर भाजपा का कब्जा था।
वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव में भाजपा के सत्ता में आने से पहले ही निगम चुनाव जीते थे। सत्तासीन वीरभद्र सरकार को तब भाजपा ने झटका दिया था। भाजपा के परचम को कायम रखने की विशेष जिम्मेदारी जयराम ठाकुर की ही होगी। हालांकि, भाजपा ने नगर निगम चुनाव के ठीक बीच नए पार्टी प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. राजीव बिंदल बनाए हैं। वह नगर परिषद सोलन के अध्यक्ष बनने के बाद विधानसभा की दहलीज लांघकर हिमाचल भाजपा के कद्दावर नेता के रूप में उभर चुके हैं। वह पिछली बार के नगर निगम शिमला चुनाव के प्रभारी थे और जोड़-तोड़ की रणनीति के माहिर हैं। हालांकि, उन्हें बहुत वक्त नहीं मिल पाया है। फिर भी भाजपा को उनकी बिसात पर भी विश्वास है, जिसका लाभ जयराम ठाकुर की प्रतिष्ठा को ही होगा।
वहीं, मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू किसी भी हाल में कांग्रेस का नगर निगम बनाने के लिए प्रयासरत हैं। छात्र राजनीति में सक्रिय होने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत भी नगर निगम शिमला के चुनाव में पार्षद का चुनाव जीतकर की थी। आज वह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इन चुनाव में विशेष बात यह है कि विधानसभा चुनाव की तरह पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के नाम पर वोट नहीं मांगे जा रहे हैं, जबकि यह चुनाव मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में ही लड़े जा रहे हैं।