यह 90 का दशक था, एक शख्स को लगा कि श्रीवृज राज स्वामी मंदिर नूरपुर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य पर श्रदालुओं के लिए कुछ फलाहार लगाया जाए। शुरुआत 5 किलो आलू के स्टाल से की गई। लेकिन श्रदालुओं को इस शख्स के स्टाल में कोई रुचि नही थी, जन्माष्टमी में लगाया गया 5 किलो का स्टाल भी खत्म न हो सका लेकिन इस शख्स का जज्बा कम नहीं हो सका। उस समय जन्माष्टमी में श्रदालु इतनी ज्यादा संख्या में नही आते थे। अगले साल फिर से जन्माष्टमी के उपलक्ष्य पर इस शख्स ने 20 किलो आलू के साथ दूध का स्टाल भी लगा दिया।
उस दिन उसके उस शख्स के दोनों स्टालों पर श्रदालु भी उमड़े। जी हां हम बात कर रहे है जननायक एवं समाजसेवी स्व राकेश महाजन की। धीरे धीरे राकेश महाजन का एक स्टाल कई स्टालों में तबदील हो गया और एक विशाल लंगर का रूप ले चुका है। विशाल लंगर के बाद जन्माष्टमी को मेले का रूप देने के लिए राकेश महाजन ने बाहरी राज्यो से झूले मंगवाना शुरू किए। राकेश महाजन किला ग्राउंड में मेले का आयोजन करने के लिए अपनी जेब से बिना किसी सरकारी मदद से पुरातत्व विभाग को 25 हजार रुपये प्रति दिन के जमा करवाते थे।
जब नूरपुर की जन्माष्टमी ने एक मेले का रूप ले लिया तो नूरपुर क्षेत्र व दूर दराज के लोग भी जन्माष्टमी मेले में पहुंचने शुरू हुए। आज यह त्योहार नूरपुर का सबसे बड़ा उत्सव बन चुका है जिसे सरकार ने राज्य स्तरीय मेले का दर्जा दे दिया है। राकेश महाजन के स्वर्ग सिधारने के बाद उनका परिवार इस आयोजन को धूमधाम से करता है। 18 अगस्त को राज्यस्तरीय जन्माष्टमी के दिन प्रदेश के राज्यपाल ने नगर परिषद परिसर में बनाई गई स्व राकेश महाजन की प्रतिमा का अनावरण किया।