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बहुचर्चित 250 करोड़ रुपये के छात्रवृत्ति घोटाले में हिमाचल, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के 13 निजी शिक्षण संस्थानों की जांच में गंभीर अनियमितताएं पाई गई हैं। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के रडार पर चल रहे 22 में से 13 निजी शिक्षण संस्थानों की जांच में सामने आया है कि करीब दो हजार फर्जी छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति ली गई है। सीबीआई ने इनके खातों की छंटनी कर दी है। शेष संस्थानों के खातों और अन्य दस्तावेजों की जांच की जानी बाकी है। इन निजी संस्थानों के कंप्यूटर और अन्य संबंधित दस्तावेजों, खातों और डाटा की जांच से पता चला है कि छात्रवृत्ति निधि का गबन किया गया था।
इन संस्थानों ने उन छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति ली, जो मौजूद नहीं थे या फिर संस्थान छोड़कर चले गए थे। इसका खुलासा तब हुआ, जब अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रों के लिए 36 योजनाओं के तहत पात्र लाभार्थियों को छात्रवृत्ति का भुगतान नहीं किया गया। लाहौल-स्पीति जिले में स्पीति घाटी के सरकारी स्कूलों के छात्रों को पिछले पांच वर्षों से कोई छात्रवृत्ति नहीं दी गई थी। घपले के लिए कई संस्थानों की ओर से छात्रों के आधार नंबर जमा नहीं कराए गए, एक से अधिक छात्रों की छात्रवृत्ति वापस लेने के लिए एक ही आधार खातों का उपयोग किया गया और राष्ट्रीयकृत बैंकों में फर्जी खाते खुलवाए गए।
पांच साल चलता रहा खेल
यह घोटाला लगभग पांच साल तक चलता रहा। सूत्र बताते हैं कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति के 28 करोड़ रुपये से अधिक का पैसा ऊना, चंबा, सिरमौर और कांगड़ा जिलों में सक्षम निकायों से संबद्धता के बिना एक नाम से चल रहे नौ फर्जी संस्थानों में वितरित किया गया था।
सीबीआई ने 8 मई, 2019 को दर्ज किया था मामला
सीबीआई ने 8 मई, 2019 को आपराधिक विश्वासघात, जालसाजी और धोखाधड़ी के तहत मामला दर्ज किया था। छात्रवृत्ति का पैसा निजी संस्थानों को दिया गया। मामले में अब तक गड़बड़ी करने वाले संस्थानों के निदेशकों, शिक्षा विभाग के कर्मचारियों और बैंक कर्मियों समेत 16 से अधिक लोगों के खिलाफ चार आरोप पत्र दाखिल किए जा चुके हैं।