किसान सरकारी खरीद
जिले में इस समय गेहूं की कटाई जोरों पर है, लेकिन फसल की खरीद को लेकर जिले में बनाए गए दो खरीद केंद्रों में बेहद कम संख्या में किसान पहुंच रहे हैं। इसके विपरीत निजी व्यापारियों के पास बड़ी संख्या में किसान पहुंच रहे हैं। किसानों का तर्क है कि सरकारी खरीद केंद्रों में औपचारिकताएं अधिक हैं, जबकि व्यापारी बिना समय गंवाए उपज खरीद रहे हैं। व्यापारी भी उसी कीमत पर फसल खरीद रहे, जो दाम सरकारी खरीद केंद्रों में मिल रहे हैं।
जानकारी के अनुसार जिले की टकराला और रामपुर मंडी में केवल नौ किसान फसल बेचने पहुंचे। इन किसानों के अपनी 300 क्विंटल फसल केंद्रों में बेची। दरअसल, सरकारी केंद्रों में फसल बेचने से पहले ऑनलाइन पंजीकरण करवाना पड़ता है और उसके बाद स्लॉट की बुकिंग होती है। उसी में तय दिन और समय पर किसानों को फसल लेकर खरीद केंद्रों में पहुंचना होता है। दूसरी तरफ व्यापारी बिना किसी औपचारिकता के तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,125 रुपये में उपज खरीद रहे हैं। किसान रघुवीर सिंह, अमृतपाल, रविंद्र सिंह, सुरिंद्र सैनी और अजय स्याल ने बताया कि इस बार फसल पर मौसम की मार पड़ी है। इससे दाने का आकार भी छोटा रहा है और रंग भी काला पड़ गया।
इसके बावजूद व्यापारी फसल एमएसपी पर खरीद रहे हैं, जबकि सरकारी केंद्रों में दाने की छंटाई होती है और फसल की गुणवत्ता के मुताबिक दाम तय होते हैं। ऐसे में व्यापारियों को फसल देना सुगम होने के साथ लाभकारी भी है। बैंक खाते में भुगतान होना आवश्यकः भूपेंद्र ठाकुर कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) के जिला सचिव भूपेंद्र सिंह ठाकुर ने बताया कि अगर उनके पास पंजीकृत कोई व्यापारी किसानों को उपज के अच्छे दाम दे रहा है तो उसमें कोई आपत्ति नहीं है। मगर उपज की एवज में भुगतान कैश नहीं बल्कि बैंक खाते में होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि किसान सुनिश्चित करें कि उन्हें फसल की तय एमएसपी 2,125 रुपये प्रति क्विंटल मिले। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर किसान सरकारी केंद्रों में फसल बेचते हैं तो आयकर से जुड़े किसी भी प्रकार के स्पष्टीकरण को लेकर एपीएमसी की जिम्मेदारी रहती है। जबकि व्यापारी के पास फसल बेचने पर उक्त व्यापारी ही स्पष्टीकरण के लिए बाध्य होगा।