कांगड़ा घाटी
कांगड़ा घाटी में देसी धान के दिन लद गए हैं। इन दिनों जिला भर में धान की पनीरी रोपी जा रही है, लेकिन 90 फीसदी से भी ज्यादा किसान हाइब्रिड धान लगा रहे हैं। हाइब्रिड धान की देसी से पांच गुना ज्यादा प्रोडक्शन है, तो दूसरा जोतों का छोटा आकार किसानों को हाइब्रिड धान के प्रति प्रेरित कर रहा है। डेढ़ दशक पहले जिला में देसी धान का बोलबाला था। उस समय में हच्छू, स_ू परमल, चैना, टावटा, राम अजवायन, देसी बासमती आदि धान को उगाया जाता था,लेकिन पैदावार कम होने के कारण अब किसानों ने इन किस्मों से मुंह मोड़ लिया है।
जिला में 2 लाख 35 हजार किसान हैं, इसमें डेढ़ लाख तक धान उगाते हैं। इसके अलावा मक्की का भी उत्पादन इस सीजन में किया जाता है। जिला में पलम के साथ चंगर इलाका भी है। पहाड़ी इलाका भी है और मैदानी इलाका भी। हाइब्रिड धान में किसानों की दिक्कत यह है कि उन्हें यह पता नहीं चलता कि कौन सा बीज उनके इलाके में सफल होगा। किसानों ने प्रदेश सरकार से मांग उठाई है कि हर इलाके के हिसाब से पंचायतों में बीज का डिस्प्ले करना चाहिए, ताकि उन्हें पता चल जाए कि उनके खेतों में कौन सा धान बेहतर होगा।
कौन सा बीज लें, पता नहीं
मौजूद समय में कृषि विभाग के अलावा ओपन मार्केट में बीज मिलता है। ओपन मार्केट में धान की इतनी किस्में हैं कि किसान समझ नहीं पाते कि कौन सी किस्म लें। किसान संजय कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि विभाग ने बीज किस राज्य से मंगवाया है। उन्हें आशंका है कि जहां से बीज लाया गया है, वह कांगड़ा के हालात मुताबिक होगा भी या नहीं।
सर्टिफिकेशन और किसान
डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चर डा राहुल कटोच कहते हैं कि कृषि विभाग सर्टिफाइड बीज दे रहा है। किसान विजय का सवाल है कि क्या ओपन मार्केट के बीज भी सर्टिफाइड हैं। किसानों का यह भी कहना है कि धर्मशाला, शाहपुर, जवाली, कांगड़ा, पालमपुर जैसे पलम इलाकों और रानीताल, बड़ोह, ज्वालामुखी जैसे चंगर क्षेत्रों में एक ही बीज के क्या अलग-अलग रिजल्ट कैसे हो सकते हैं।
बीज की डिमांड का पता नहीं
जिला में 35 हजार हेक्टेयर पर धान होता है, लेकिन इसके लिए कितना बीज चाहिए, यह आंकड़ा न तो विभाग के पास है और न ही मलां राइस रिसर्च सेंटर के पास। मलां सेंटर विशेषज्ञ एडी बिंद्रा ने बताया कि अभी यहां से देसी धान की 11 पारंपरिक किस्में रेक्मेंड की हैं।
किस तरीके मेें कौन बीज
किसान संजीव कहते हैं कि जिला में तीन तरह से धान उगाया जाता है। पनीरी, श्री विधि और बत्तर से। इन तीनों विधियों में कौन सा धान फिट होगा। इस पर प्रदेश सरकार के विशेषज्ञों को कसरत करनी चाहिए। डेढ़ दशक पहले चंगर से सटे इलाकों में देर से धान लगाया जाता था, क्योंकि वहां पानी लेट मिलता है। अब नए धान में वहां के किसानों को क्या करना चाहिए, इस पर विभाग को बताना चाहिए।