कोई बादल फटने को दोष दे रहा है तो कोई सरकार की लापरवाही को। मगर कोई ये मानने और बोलने को तैयार नहीं है कि पहाड़ी इलाकों में तबाही जलधाराओं में उफान के कारण नहीं बल्कि इंसान के लालच की सीमाएं पार होने के कारण मच रही है। यह कुदरत की नहीं, इंसानी फितरत की देन है। यह जलवायु परिवर्तन ही नहीं, भावना परिवर्तन की भी मार है।
बरसात में आपको कोई पुराना कच्चा मकान नदी या नाले में डूबता नहीं मिलेगा। सब नए मकान पानी में डूब रहे होंगे जो लोगों ने उस खाली जगह पर बनाए हैं जहां उनके पूर्वज या तो खेती करते थे या फिर यूं ही उन्होंने जमीन खाली छोड़ी हुई थी। कभी सोचा कि उन्होंने क्यों यहां मकान नहीं बनाया था? दरसअल हमारे पूर्वज इस बात को समझते थे कि पहाड़ी नदी-नालों के करीब बसना खतरनाक हो सकता है। इसलिए उन्हें दूर-दूर पहाड़ों की चोटियों पर जाकर बसना मंजूर था मगर जलधाराओं से उन्होंने दूरी बनाकर रखी। हम उनसे ज्यादा विकसित और शिक्षित हैं मगर खड्डों और नदी-नालों में घुसने को बेताब हैं।
पालमपुर में न्यूगल खड्ड लगातार दूसरे साल सौरभ वन विहार में विहार कर रही है। पिछले साल जब सौरभ वन विहार को नुकसान पहुंचा था, तब मैंने लिखा था कि खड्डों और नदियों के इलाके में किसी भी तरह का निर्माण बेवकूफी है। मगर एक मंत्री जी ने लाखों लगाकर फिर से वहीं सौरभ वन विहार बनाने का ऐलान किया था। उसके बाद बड़ी रकम खर्च भी हुई थी मगर इस साल फिर सब बह गया।
पूरे हिमाचल में जलधाराओं के बीच या एकदम किनारे पर कहीं घर बने हैं, कहीं दुकानें, कहीं सरकारी दफ्तर, कहीं कॉलोनियां तो कहीं फैक्ट्रियां। कुल्लू, मंडी, कांगड़ा, चम्बा, शिमला; कौन सी जगह ऐसी है जहां किसी ने गांव के नाले का रुख न मोड़ा हो? कौन सा जिला ऐसा है जहां किसी खड्ड में कोई सरकारी इमारत न बनी हो? नदी किनारे का कौन सा शहर ऐसा है जहां कई मकानों के पिलर नदी की तलहटी से न उठे हों?
अगर खड्डें और नदी-नाले 15-20 साल में रास्ता नहीं बदल रहे तो इसका मतलब यह नहीं कि आप उनके इलाके में घुसपैठ कर दें। आज से 5 करोड़ साल पहले हिमालय पर्वत बना था। ये नदी-नाले तब से नहीं तो कम से कम कुछ लाख सालों से तो यहां बह ही रहे हैं। सोचिए, अब तक कितनी बार इन्होंने रास्ता बदला होगा। इसलिए सूख चुके नदी-नालों के नजदीक की भी कोई जगह सुरक्षित नहीं मानी जा सकती।
बहरहाल, शुक्र मनाइए कि आप मैदान नहीं पहाड़ में रहते हैं जहां बारिश का पानी ठहरता नहीं। यह नालों और खड्डों के सहारे लगातार निचले इलाके की ओर बहते-बहते नदियों तक पहुंच जाता है। कुदरत ने खुद पानी के लिए ऐसे रास्ते बनाए हैं कि यह अचानक आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकता। लेकिन आप ‘आ बैल मुझे मार’ की तर्ज पर पानी के इन रास्तों को ही रोक देंगे तो फिर नुकसान के लिए भी आप खुद ही जिम्मेदार होंगे। याद रखें कि नदी-नाले पानी के बहने के लिए हैं, इंसान के रहने के लिए नहीं।