ऊना: होला मोहल्ला मेला मैड़ी में श्रद्धा का सैलाब
ऊना : ऐतिहासिक डेरा बाबा बड़भाग सिंह जी होला मोहल्ला मेला मैड़ी में आस्था का सैलाब उमड़ा है। मेला क्षेत्र में बड़ी संख्या में विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। रविवार को मेले के 7वें दिन विभिन्न धार्मिक स्थलों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने शीश नवाया। मेले में पहुंचे श्रद्धालु श्री चरण गंगा (धौलीधार) में स्नान करने के बाद बेरी साहिब, गुरुद्वारा मंजी साहिब, कुज्जा सर, दमदमा साहिब, डेरा दुखभंजन साहिब, मंदिर वीर नाहर सिंह सहित विभिन्न धार्मिक स्थलों में शीश नवा रहे हैं।
श्रद्धालुओं की मानें तो यहां पर सच्चे मन से जो भी मुराद मांगी जाए बाबा जी उसे जरूर पूरी करते हैं। वहीं मैड़ी मेले में उमड़ रही भीड़ को देखते हुए प्रशासन पूरी तरह से सतर्क है। पुलिस मेला अधिकारी एवं एएसपी ऊना प्रवीण धीमान का कहना है कि पुलिस प्रशासन की मेला क्षेत्र में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ में घुसने वाले आपराधिक एवं असामाजिक तत्वों पर पैनी नजर है।
मेला आयोजन कमेटी के अध्यक्ष एवं एसडीएम अम्ब विवेक महाजन ने कहा कि मुख्य धार्मिक स्थलों के नजदीक उमड़ रही भीड़ को कंट्रोल करने के लिए पर्याप्त बंदोबस्त किए हैं। मेला अधिकारी एवं एडीसी ऊना महेंद्र पाल गुर्जर ने बताया कि मेला सुचारू रूप से चल रहा है।
डेरा बाबा बड़भाग सिंह के इतिहास पर एक नजर
डेरा बाबा बड़भाग सिंह के इतिहास पर नजर डाली जाए तो वर्ष 1761 में पंजाब के कस्बा करतारपुर में सिख गुरु अर्जुन देव जी के वंशज बाबा राम सिंह सोढ़ी और उनकी धर्मपत्नी माता राजकौर के घर में बड़भाग सिंह जी का जन्म हुआ। उन दिनों अफगानों के साथ सिख जत्थेदारों की खूनी भिड़तें होती रहती थीं। बाबा बड़भाग सिंह बाल्याकाल से ही आध्यातम को समर्पित होकर पीड़ित मानवता की सेवा को ही अपना लक्ष्य मानने लगे थे। कहते हैं कि एक दिन वह घूमते हुए मैड़ी गांव स्थित दर्शनी खड्ड जिसे अब चरण गंगा कहा जाता है, पहुंचे और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के बाद मैड़ी स्थित एक बेरी के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न हो गए।
पिशाच को पिंजरे में किया कैद
यह क्षेत्र वीर नाहर सिंह नामक एक पिशाच के प्रभाव में था। नाहर सिंह द्वारा परेशान किए जाने के बावजूद बाबा बड़भाग सिंह ने इस स्थान पर घोर तपस्या की तथा एक दिन दोनों का आमना-सामना हो गया तथा बाबा बड़भाग सिंह ने दिव्य शक्ति से नाहर सिंह पर काबू पाकर उसे बेरी के पेड़ के नीचे ही एक पिंजरे में कैद कर लिया। कहते हैं कि बाबा बड़भाग सिंह ने नाहर सिंह को इस शर्त पर आजाद किया था कि नाहर सिंह अब इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार और बुरी आत्माओं के शिंकजे में जकड़े लोगों को स्वस्थ करेंगे और साथ ही निःसंतान लोगों को फलने का आशीर्वाद भी देंगे। यह बेरी का पेड़ आज भी इसी स्थान पर मौजूद है तथा हर वर्ष लाखों की तादाद में देश-विदेश से श्रद्धालु आकर माथा टेककर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर प्रेत आत्माओं से ग्रसित व्यक्ति को कुछ देर के लिए इस बेरी के पेड़ के नीचे बिठाया जाए तो वह व्यक्ति प्रेत आत्माओं के चंगुल से आजाद हो जाता है।
मैडी में 17 वर्ष 8 महीने की थी तपस्या
मैडी में स्थित मंजी साहिब गुरुद्वारा के गद्दीनशीन संत स्वर्ण सिंह जी की मानें तो बाबा बड़भाग सिंह जी ने इसी स्थान पर 17 वर्ष 8 महीने तपस्या की थी। संत स्वर्ण सिंह जी ने कहा कि हर साल होला मेले पर सभी धर्मों से संबंध रखने वाले लाखों श्रद्धालु जहां नतमस्तक होते हैं। बाबा बड़भाग सिंह जी मैड़ी में तप के दौरान चरणगंगा में ही स्नान करते थे। मान्यता है कि धौलीधार चरणगंगा में स्नान करने से मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। वही नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है और कई बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।