आज तगड़ा कांड हो गया। चम्बे वाली रानी साहिबा आशा कुमारी को उनकी सोशल मीडिया को हैंडल करने वाली टीम ने जगहंसाई का पात्र बना दिया। इनको यह भी नहीं पता था कि ठाकुर राम लाल और राम लाल ठाकुर में दिन-रात नहीं बल्कि सदियों का फर्क है। स्व ठाकुर राम लाल हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे थे और रामलाल ठाकुर मुख्यमंत्री बनने के लिए जोर लगा रहे हैं। नाम के साथ ठाकुर जुड़ा देख जो फोटो गूगल देवता ने दिखाई वही सोशल मीडिया पर चेप दी। अब रानी साहिबा सोशल मीडिया पर माफी मांग कर भूल सुधार कर रही हैं।
वैसे हुआ तो ठीक है। पहले के नेता जनता से सीधा संवाद करते थे। अब नेताओं ने सोसाइटी को हैंडल करने के लिए हैंडलर कम्पनियां रख ली हैं। खुद आम आदमी से कोई बात नहीं करते, यह काम भी किराये या यूं कहें कि भाड़े के लोगों को दे दिया है तो कोई गलती नहीं होगी। जनता की कीमत भी यह लोग खुद न लगाकर भाड़े के लोगों से लगवाने पर उतारू हो गए हैं। परम्परागत मीडिया यानि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोगों को तो नेताओं ने दरकिनार करके रख दिया है। अपने किराये के मीडिया हाउस यानि पीआर कम्पनियों को उनकी कीमत अदा करके जनता को सुनाने-समझाने का जिम्मा दिया हुआ है। जनता क्या कहना चाहती है,इस बात की कोई एहमियत नेताओ को नहीं रही है।
वैसे इस हालत के लिए परम्परागत मीडिया भी कम जिम्मेदार नहीं है। पेड न्यूज का जनक यही कुछ परम्परागत मीडिया घराने भी रहे हैं। करीबन 15 सालो से हिमाचल में पेड न्यूज का गोरखधंधा जारी है। पैसे दो जो मर्जी लिखवा लो,दिखवा लो, बस पैसा फेंको और तमाशा देखो। शायद यही एक वजह भी रही है कि नेताओं ने किराये पर पीआर एजेंसियां अटैच कर लीं। ठीक भी है,जब पैसा देना ही है तो उनको दो,जो नेताओं के इशारों पर काम करें। उनको क्या देना जो पैसा भी खाएं और गुर्राएं भी।
मगर इस दौड़ में जनता का कोई नहीं रहा। कुछ एक मीडिया हाउस को छोड़ दें तो बकाया तमाम पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार मिलते हैं। अब किराये के धंधेबाज पत्रकार हैं तो मिशन की तरह काम करने वाले मीडिया हॉउस और पत्रकारों को कौन एहमियत देगा। पर यह सवाल जरूर भाजपा-कांग्रेस के नेताओं को पूछा जाना बनता है कि आप लोग नेता हो या मदारी जो अब जनसभाओं की बजाए मजमे लगाने में मस्त हो । आप का असली चेहरा है क्या ????