मोनिका शर्मा, धर्मशाला
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु से आने वाले आम के आगे हिमाचली फल बुरी तरह पिट गया है। हिमाचल में इस बार आम की फसल का ऑन ईयर है, यानी बंपर फसल है। पिछले साल के मुकाबले इस बार 10 प्रतिशत फसल ज्यादा है, लेकिन यह बाहरी फल से कंपीटीशन नहीं कर पा रही है। प्रदेश में इस बार 45 हजार मीट्रिक के करीब आम की फसल का अनुमान है। इनमें दशहरी,चौसा व लंगड़ा प्रमुख व्यवसायिक किस्में हैं। हिमाचल का आम अमूमन जुलाई में मंडियों में आता है। इन दिनों दशहरी आम ने दस्तक दी है। चौसा व लंगड़ा किस्में प्रदेश की मंडियों में अभी नहीं आई हैं। हिमाचली दशहरी आम मुश्किल से 20 रुपए किलो थोक व परचून में 50 रुपए किलो में बिक रहा है। वहीं बाहर से आने वाला सफेदा 150 रुपए किलो बिक रहा है। ऐसे में हिमाचली आम कहीं नहीं ठहर रहा। बागबानी विशेषज्ञों का कहना है कि हिमाचल में फरवरी माह में ही आंध्र प्रदेश से सफेदा व तोतापुरी किस्में आ जाती हैं। भले ही ये किस्में उस समय स्वाद न दे रही हों, लेकिन शुरूआत में लोग इन्हें महंगे दामों पर धड़ाधड़ खरीदते हैं। उसके बाद कर्नाटक और तमिलनाडु का फल आता है। मार्च, अप्रैल व मई में इन दो राज्यों के फल को भी खूब ग्राहक मिलते हैं। उसके बाद जुलाई में हिमाचली आम आता है। जुलाई में भी दशहरी आम ज्यादा आता है। यह फल बाहरी राज्यों से आने वाले सफेदा आदि किस्मों से कंपीट नहीं कर पाता है। विशेषज्ञों के अनुसार जुलाई तक लोग आम से बोर भी हो चुके होते हैं। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि हिमाचल में भी अरली और लेट वैरायटी की पैदावार बढ़ाई जाए।
हिमाचली किसान तेजी से बागबानी की तरफ बढ़ रहे हैं। अब बागबानी व्यवसाय से बिजनेस बन गया है। यही कारण है कि बागबानी विभाग ने पूसा की चार नई किस्मों समेत छह नई वैरायटी पर ट्रायल शुरू किए हैं, ये किस्में अगस्त तक तैयार होंगी। इससे हिमाचली आम बाहरी राज्यों के फल पर भारी पड़ेगा
डा कमलशील नेगी, डिप्टी डायरेक्टर, हार्टीकल्चर