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Himachal Election: धर्मशाला से जो जीता, उसी की शिमला में बनी सरकार

पहाड़ी राज्य हिमाचल की दूसरी राजधानी धर्मशाला का राजनीतिक इतिहास खुद को स्वर्णिम अक्षरों व पन्नों में पिरोए हुए है। धर्मशाला से अब तक जिस भी पार्टी का प्रत्याशी जीतकर विधानसभा में पहुंचा है, उसी की राज्य में सरकार भी बनी है। इतना ही नहीं धर्मशाला ने कभी भी विपक्ष में अपने प्रतिनिधि को नहीं बिठाया है। हालांकि इसमें मात्र दो बार जिसमें पहली बार बृज लाल 1982 और धर्मशाला से किशन कपूर अपनी जीत की हैट्रिक के दौरान 1993-98 के कार्यकाल में विपक्ष में भी बैठे थे। वहीं धर्मशाला क्षेत्र पिछले दो दशकों से अधिक समय से राज्य सरकार में महत्त्वपूर्ण रहा है और लगातार यहां से मंत्री भी बनते रहे हैं। हालांकि वर्ष 2019 के उपचुनाव में मात्र अढ़ाई वर्ष धर्मशाला के हिस्से मंत्री पद नहीं आया, जबकि इस बार की कांग्रेस सरकार ने भी डेढ़ वर्ष तक मंत्री पद नहीं सौंपा।

इसके बाद हिमाचल की राजनीति में जो भूचाल आया है, उससे ही एक बार फिर उपचुनाव हो रहे हैं। ऐसे में इस बार प्रदेश में उपचुनावों के कई सियासी समीकरण भी बन रहे हैं, तो इस बार धर्मशाला की स्मार्ट जनता ने किसकी किस्मत ईवीएम में कैद की है, ये देखना सबके लिए हैरत व रोमांचक बना हुआ है। धर्मशाला में कभी भी अब तक आजाद प्रत्याशी की जीत नहीं हो पाई है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के उपचुनाव में भी पर्यटन, बौद्ध एवं खेल नगरी संग स्मार्ट सिटी धर्मशाला के वोटरों की एक बार फिर स्मार्टनेस दावों पर है।

ऐसा रहा है सियासी इतिहास

विस चुनावों में अब तक के इतिहास में सत्तापक्ष में बैठने का सिलसिला रहा है। 1972 के चुनावों में कंाग्रेस के नए चेहरे चंद्र वर्कर ने जीत हासिल की, सीएम वाईएस परमार सरकार में विधायक रहे। 1977 चुनाव में धर्मशाला में पहली बार जनता दल ने जीत का तिलक अपने माथे पर लगाया, इसमें पहले कांग्रेस के ठाकुर राम लाल कुछ माह के लिए सीएम बने, फिर जनता पार्टी से मुख्यमंत्री शांता कुमार की नेतृत्व वाली सरकार में धर्मशाला के विधायक बैठे। हालांकि फिर 1982 में जनता दल ने क्षेत्र में रिपीट किया और कांग्रेस के मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल व फिर सीएम वीरभद्र सिंह सरकार में विपक्ष में बैठे। 1985 के चुनाव में कांग्रेस के मूल राज पाधा वीरभद्र सिंह कांग्रेस सरकार में विधायक बने। 1990 में भाजपा के युवा नेता किशन कपूर सीएम शांता कुमार की सरकार में विधायक बने। इसके बाद कपूर ने लगातार 1993 और 1998 में जीत हासिल कर हैट्रिक लगाई। कपूर ने 1993 में जीत हासिल की, तो इस बार फिर कांग्रेस की वीरभद्र सिंह की सरकार में विपक्ष में बैठे। इसके बाद 2003 के चुनावों में कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी ने जीत हासिल की और वीरभद्र सिंह की कांग्रेस सरकार में मंत्री पद हासिल किया। 2007 में किशन कपूर ने एक बार फिर धर्मशाला क्षेत्र से जीत दर्ज करके तत्कालीन सीएम प्रो. प्रेम कुमार धूमल की सरकार में मंत्री बने।

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के सुधीर शर्मा जीत हासिल कर विधानसभा पहुचें थे, और तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह सरकार में मंत्री बने। वर्ष 2017 के चुनावों में भाजपा प्रत्याशी किशन कपूर ने एक बार फिर विजय हासिल की। किशन कपूर भाजपा के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार में मंत्री बने। इस बीच वर्ष 2019 में धर्मशाला के इतिहास में पहली बार उप-चुनाव भी हुआ, जिसमें भी वर्तमान सरकार के ही विधायक विशाल नैहरिया जीत दर्ज कर सत्तापक्ष में विधानसभा में पहुंचे। चुनाव-2022 में भी धर्मशाला ने सुधीर शर्मा को कांग्रेस सरकार सीएम सुखविंदर सिंह के लिए भेजा, हालांकि मंत्री पद नहीं मिला।

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