धर्मशाला का एक रेस्ट
* ऑल टाइम बुंकिंग रहती है फुल, पर 6 महीनों में कमाए 1650 कुल
* जिला प्रशासन को नहीं जानकारी, भवन है सरकारी
* खबर आज तक का स्पेशल स्टिंग, देखें और समझें…
* कैसे होता है आम पब्लिक के पैसे का दुरुपयोग
* बेखबर जमाना… बाखबर प्रबंधन अधिकारी…
बेफिक्र है जमाना, हमारी मुस्कुराहटों से… ये वो चंद अलफाज़ है जो एक शायरी का मुखड़ा है। लेकिन हमनें ये आपको इसलिए सुनाईं और बताई क्योंकि इन दिनों ये पंक्ति प्रबंधन के कर्मचारियों और अधिकारियों पर बिलकुल फिट बैठती है। ये प्रबंधन है हिमाचल सरकार के उस रेस्ट हाउस धर्मशाला का जिससे जिला प्रशासन भी बेख़बर है पर इस रेस्ट हाउस के अधिकारी-कर्मचारी बाख़बर है कि हम सरकार के ही अंडर आते हैं। ये रेस्ट हाउस पड़ता है धर्मशाला के रक्कड़ में, जिसे सामुदियक भवन के नाम सेभी जाना जाता है… तो चलिये खबर के शुरुआत करते हैं…
दरअसल, धर्मशाला के रक्कड़ में दशकों पुराना एक सरकारी रेस्ट हाउस है, जहां पर इंसानी भूतों का राज चलता। ये इंसानी भूत किसी को यहां फटकने नहीं देते, चाहे वह कोई भी क्यों न हो। इंसानी भूतों का खौफ ऐसा है कि अगर कोई ग़लती से यहां बुकिंग करवाने चला भी जाए या फोन पर बुकिंग करवाना चाहे तो उसे साफ मना कर दी जाती है।
मना करने की वजह रहती है, ऑल टाइम बुकिंग फुल रहना… पर अंचभा इस बात की है कि न तो यहां सरकार का कोई नुमाइंदा जाता है और न ही प्रशासन का और न ही जनता… तो हमेशा ये बुकिंग फुल कैसे रहती है। कई दफा हमारी टीम ने इसे खुद जांचा भी… हर दफा ये रेस्ट हाउस बुक ही निकला.. लेकिन शक का दायरा तब बढ़ता गया जब न तो प्रशासन का इसकी कोई ख़बर थी और न हीं सरकार को… ऐसे में ऑल टाइम बिजी रहने वाले इस रेस्ट हाउस पर हमारी टीम ने खुद जाना मुनासिब समझा। स्टिंग ऑपरेशन के लिए मृत्युंजय पुरी अपनी टीम के साथ वहां पहुंचे तो पता चला कि यहां इंसानी भूतों ने अपना डर झूठ के दम पर बनाया हुआ है। कागज़ों में 6 महीनों में इस रेस्ट हाउस ने कुल 1650 रुपये ही कमाएं हैं… सबसे पहले आप ये स्टिंग देखिये…
तो देखा आपने.. कई सवाल, बवाल की वजह बन रहे हैं। क्योंकि बात सरकार से लेकर जनता तक जुड़ी थी, तो इसका पता जमाने को भी लगना चाहिए। ऐसे में टीम ने खुद जाकर इसका खुलासा करना चाहा। जानकारी के दौरान ये भी पता चला कि इस रेस्ट हाउस को अब समुदाय भवन का नाम दे दिया गया है। आरोप तो यहां तक लगे कि यहां का प्रबंधन और कुछ अधिकारी इसे अपने निजी रेस्ट हाउस के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। हालांकि इसकी कोई पुष्टि तो नहीं, लेकिन सरकार औऱ प्रशासन की नज़रों से इस रेस्ट हाउस का दूर रहना, इन आरोपों को सही साबित करता जरूर नज़र आता है।
मजे की बात ये भी मौजूदा सुक्खू सरकार ने रेस्ट हाउस के किराये तो बढ़वा दिए, हिमाचल भवन और सदन में वीआईपी कल्चर तो ख़त्म कर दिया, लेकिन उनकी अपनी करोड़ों की संपत्ति का पब्लिक के बजाये कौन फायदा उठा रहा है इसकी किसी को कोई ख़बर नहीं। उम्मीद है कि कुछ वक़्त में मौजूदा सुक्खू सरकार कांगड़ा जिला के दौरे पर होने वाली है। एक साल का जश्न और उसके बाद शीतकालीन सत्र… उससे पहले इस रेस्ट हाउस का गेमप्लान प्रशासन और सरकार के सामने आ जाए।
खैर, सवाल ये भी है कि अगर वाकेई में ये सब सही है तो आखिरकार किसके कहने पर ये सब होता होगा..?? क्या ऐसे अधिकारी-कर्मचारी या प्रबंधन पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए…?? खाली रहने पर भी क्यों इसे जनता को नहीं दिया जाता..?? सरकार की करोड़ों की संपत्ति पर कौन कुंडली जमाकर बैठा है…?? इन सवालों का जवाब तभी मिलना संभव है जब इसकी जांच सही से हो पाए…
फिलहाल तो जांच करने वाला जिला प्रशासन इससे बेख़बर है तो उम्मीद करना शायद नालायकी ही होगी… पर एक उम्मीद जरूर रहेगी कि इस स्टिंग ऑपरेशन के बाद प्रशासन नींद से जागे और जांच के लिए जल्द भागे… फिलहाल तो रेस्ट हाउस का प्रबंधन ये ही कहा रहा है कि… बेफ्रिक है जमाना, हमारी मुस्कुराहटों से…