पालमपुर, जवाली व धर्मशाला में करिश्मा नहीं कर पाए नए कैंडीडेट , शाहपुर में दिखी संगठन में कमी, इंदौरा में रीता धीमान ने दी टक्कर
मोनिका शर्मा, धर्मशाला
कांगड़ा जिला में भाजपा को इस बार नए प्रयोग ले डूबे हैं। पार्टी ने कई ऐसी बेजा गलतियां की हैं, जिसका खामियाजा उसके वरिष्ठ नेताओं हारकर चुकाना पड़ा है। भाजपा सबसे खराब प्रयोग फतेहपुर में रहा। वरिष्ठ नेता राकेश पठानिया को इस बार पार्टी ने उनकी पारंपरिक सीट नूरपुर से हटाकर फतेहपुर से लड़ा दिया। तर्क दिया गया कि रणबीर निक्का से टकराव को टालने के लिए ऐसा किया गया। यह प्रयोग बुरी तरह से असफल हुआ।
नए हलके में पहुंचे पठानिया को एक तो प्रचार के लिए समय नहीं मिला, दूसरा वहां उनका सामना कभी भाजपा की पृष्ठभूमि से रहे राजन सुशांत और कृपाल परमार से भी हो गया। इसके अलावा फतेहपुर में कांग्रेस के पास भवानी पठानिया जैसा सशक्त कैंडीडेट भी था। ऐसे में वहां राकेश पठानिया की हार की पटकथा पहले ही लिखी नजर आ रही थी। हालांकि पठानिया ने वहां पूरा जोर लगाते हुए नंबर दो का स्थान हासिल किया।
भाजपा का दूसरा खराब प्रयोग ज्वालामुखी और देहरा में रहा। दशकों से ज्वालामुखी में काबिज रमेश ध्वाला को इस बार देहरा से उतार दिया गया। तर्क दिया जा रहा था कि ज्वालामुखी में संगठन मंत्री पवन राणा से उनका अंदरूनी टकराव भी टलेगा और दूसरा देहरा में ओबीसी बहुल होने के कारण ध्वाला जीत जाएंगे। नतीजा यह हुआ कि ध्वाला वहां बुरी तरह हारे हैं। वह तीसरे स्थान पर रहकर बेहद कमजोर प्रत्याशी साबित हुए। यही नहीं, कभी देहरा से विधायक रह चुके पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि को ज्वालामुखी से उतार दिया गया। दोनों नेता नए हलकों में खुद को असहज महसूस कर रहे थे। ये दोनों सीटें बुरी तरह फंसी हुई दिख रही थीं। खैर, ध्वाला के साथ ज्वालामुखी से रविंद्र रवि की भी हार हुई है।
भाजपा का तीसरा नाकाम प्रयोग पालमपुर में रहा है। वहां से नए प्रत्याशी त्रिलोक कपूर की हार हुई है। माना जा रहा था कि वहां से इंदू गोस्वामी को उतारा जाएगा, लेकिन पार्टी ने त्रिलोक कपूर पर भरोसा जताया, जो आशीष बुटेल जैसे हैवीवेट कैंडीडेट के सामने नहीं टिक सके। भाजपा का एक अन्य असफल प्रयोग जवाली में भी रहा है। वहां भाजपा ने सिटिंग एमएलए अर्जुन ठाकुर का टिकट काटकर संजय गुलेरिया को दिया था। संजय गुलेरिया नगरोटा सूरियां इलाके से हैं। ज्यादातर वोटर कोटला और जवाली बैलेट में है। जवाली बैलेट से ही चंद्र कुमार हैं, ऐसे में संजय गुलेरिया को टिकट देना पार्टी को भारी पड़ा और भाजपा की हार हुई। भाजपा के लिए इंदौरा सीट पर रीता धीमान ने जरूर संघर्ष किया है। वह कांग्रेस को कड़ी टक्कर देती नजर आई। वही एक प्रत्याशी हैं, जो कांग्रेस के आसपास रहीं। बेशक उनकी हार हुई है,लेकिन उन्होंने भाजपा की तरफ से संघर्ष किया।
शाहपुर में बेदम दिखा संगठन
शाहपुर में भाजपा की ओर से लगातार जीत रही सरवीण चौधरी का इस बार शाहपुर में कांगे्रस प्रत्याशी केवल पठानिया से सीधा सामना हुआ। भाजपा ने यहां नया प्रयोग करते हुए दशकों तक सरवीण के धुर विरोधी रहे मेजर मनकोटिया को अपने पाले में कर लिया। शाहपुर में भाजपा का संगठन भी बेदम रहा। नतीजा सबके सामने है। कांग्रेस बड़ी लीड से यह सीट जीती है।