किसान इस समय कुदरत की चौतरफा मार झेल रहे हैं। एक तरफ से लंपी चर्म रोग से पशु बीमार हो रहे हैं और जान गंवा रहे हैं तो वहीं बरसात का कहर किसानों पर टूट रहा है। इसी कहर का शिकार कैल गांव के रामस्वरूप का परिवार भी हुआ। 19 अगस्त को जंगल का मलबा रामस्वरूप की गौशाला में घुस गया जिसमें दो गायों की जान चली गई। दोनों दुधारू गायों की मौत के बाद अब उनके पास सिर्फ एक बैल और तीन बच्छु रह गए हैं। प्रशासन की तरफ से राहत के नाम पर रामस्वरूप को केवल एक तिरपाल मिली है जिसमें उन्होंने अपने बाकी पशुओं को रखा है।
हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर अपनी टीम के साथ कैल गांव पहुंचे और प्रभावित परिवार से मुलाकात की। स्थिति का जायज़ा लेने के बाद डॉ. तँवर ने प्रशासन से मांग की है कि रामस्वरूप के परिवार को पर्याप्त राहत प्रदान की जाए। अगर आपदा प्रबन्धन कानून राहत मैन्युल से संभव नहीं है तो मुख्यमंत्री राहत कोष अथवा जिला प्रशासन की ओर से प्रभावित परिवार को राहत दी जाए क्योंकि हादसे की शिकार दोनों गायों के नुकसान के साथ-साथ गौशाला भी पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है जिसके पुनर्निर्माण पर भी काफी खर्च आएगा।
डॉ. तँवर ने कहा कि बरसात में ज्यादा दिनों तक पशुओं को खुले में नहीं रखा जा सकता क्योंकि इन दिनों लंपी रोग के फैलाव का खतरा बना हुआ है। खुले में कभी भी रोग फ़ैलाने वाले कीट और मक्खी पशुओं को संक्रमित कर सकते हैं।
डॉ. तँवर ने कहा कि आपदा प्रबन्धन कानून के तहत प्रभावितों को दी जाने वाली राहत न के बराबर है। इसमें पूरे नुकसान की 10 फीसदी राहत भी नहीं मिलती। उन्होंने आपदा प्रबन्धन कानून के राहत मैन्युल में संशोधन करने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार को नुकसान की कम से कम 50 फीसदी राहत देनी चाहिए।
डॉ. तँवर ने कहा कि शतलाई मशोबरा खण्ड और शिमला तहसील की आखिरी पंचायत है। जिसके झण्डी वार्ड का कैल गांव बहुत ही दुर्गम गांव है। 14 परिवारों वाला यह गाँव बहुत समय तक गाँव पानी की समस्या से जूझता रहा। हादसे की वजह से पूरा गाँव अभी भी सकते में है और भयाक्रांत है।