सियासी समर का शंखनाद अभी हुआ नहीं, लेकिन सियासी रणबांकुरों की हुंकार से देहरा की लड़ाई रोचक रहने के आसार नजर आने लगे हैं। देहरा के सियासी समंदर में बयानों के ज्वारभाटे से लहरें ऊंची उठने लगी हैं। कुछ दिन से सियासी तौर पर शांत नजर आ रहे हलके में इस बार हलचल पैदा हुई है पड़ोसी विधानसभा क्षेत्र ज्वालामुखी के विधायक एवं योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष रमेश धवाला के बयान से। इंटरनेट मीडिया पर दिए बयान में धवाला ने कहा है कि पार्टी उन्हें चाहे ज्वालामुखी से टिकट दे या देहरा से, वह चुनाव लड़ेंगे। लेकिन अगर पार्टी उन्हें टिकट नहीं देती है तो वह विचार करेंगे। इसका फैसला समय आने पर क्षेत्र के लोगों से सलाह कर लिया जाएगा।
उनका कहना है कि देहरा उनकी जन्मभूमि है और ज्वालामुखी कर्मभूमि। उनकी प्राथमिकता ज्वालामुखी ही है। 2012 के चुनाव से पहले हुए परिसीमन में वजूद में आए देहरा हलके की कई पंचायतें ज्वालामुखी का हिस्सा थीं। खुद धवाला का गांव भी देहरा हलके में ही आता है। 2012 में देहरा से भाजपा के रविंद्र रवि जीते जबकि धवाला ने ज्वालामुखी को ही रणभूमि बनाए रखा। 2012 के चुनाव में पराजय के बाद 2017 के चुनाव में ज्वालामुखी से धवाला फिर जीते। प्रदेश में भी सरकार भाजपा की बनी। उम्मीद थी कि वरिष्ठता के आधार पर धवाला को बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
धवाला लगातार भी खुद को अनदेखी का शिकार महसूस करते रहे हैं। ऐसे में अब उनका उक्त बयान कई सवाल खड़े करता है। यह बयान ज्वालामुखी में लगातार 1998 से चुनाव लड़े रहे धवाला के नए ठिकाने और हलके से पार्टी के नए संभावित उम्मीदवार के नाम की चर्चा को जन्म दे रहा है। साथ ही यह सवाल भी बड़ा है कि देहरा से पार्टी किसे उम्मीदवार बनाती है क्योंकि हाल ही में देहरा के निर्दलीय विधायक होशियार ¨सह भाजपा का हिस्सा बने हैं। पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ नेता रविंद्र ¨सह रवि भी दो बार देहरा से ही उम्मीदवार रहे हैं। ऐसे में एक और सवाल है कि यदि धवाला देहरा से पार्टी के उम्मीदवार हुए तो इन दोनों नेताओं का क्या होगा
क्या कहते हैं पार्टी पदाधिकारी
धवाला पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। सब उनका सम्मान करते हैं। किसे टिकट देना है या नहीं यह फैसला हाईकमान का होता है। देहरा या ज्वालामुखी से चुनाव लड़ने को लेकर दिया बयान उनका निजी है। संगठन अपेक्षा करता है कि वरिष्ठ नेताओं को ऐसे बयान देने से बचना चाहिए। उन्हें कार्यकर्ताओं के लिए रोल माडल बनना चाहिए। -संजीव शर्मा, अध्यक्ष, भाजपा जिला देहरा।
पंचायत प्रधान से शुरू किया था सियासी सफर
धवाला पहली बार 1978 में पंचायत प्रधान चुने गए थे। इसके बाद वह ब्लाक समिति और जिला परिषद सदस्य भी रहे। उनका कहना है कि वह आज भी हर समय जनता की सेवा के लिए मौजूद हैं। जनता की सेवा ही उनका एकमात्र उद्देश्य है।
1998 में धवाला के वोट ने बनाई थी सरकार
1998 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की ओर से दावा पेश कर वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बन चुके थे। बहुमत के लिए उस समय कांग्रेस को एक वोट की जरूरत थी। ऐसे में सबकी नजर ज्वालामुखी से जीते निर्दलीय विधायक रमेश धवाला पर टिकी थीं। बाद में धवाला के एक वोट से भाजपा के प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने थे। उस सरकार में धवाला को सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग मिला था। 2007 के चुनाव में भाजपा सरकार बनने के बाद धवाला के पास खाद्य एवं आपूर्ति विभाग का जिम्मा था।