देश भर की मंडियों
देश भर की मंडियों में अब हिमाचल प्रदेश के बागवानों के लिए तुर्किये और इटली का सेब चुनौती बन गया है। दोनों देशों के इस रेड डिलिशियस सेब ने शिमला की मंडियों में दस्तक दे दी है। इससे कोल्ड या सीए स्टोर में पड़े हिमाचली सेब के लिए नई चुनौती पैदा हो गई है। हालांकि, यहां शीत भंडारों में अब गुणवत्तापूर्ण सेब नहीं बचा है, उसी से यह चुनौती उपलब्ध हुई है। यह चुनौती आने वाले वक्त में और बढ़ सकती है। इससे सेब सीजन में हिमाचली सेब की मांग प्रभावित होती है।
हिमाचल प्रदेश की मंडियों में तुर्किये के रेड डिलिशियस सेब का 10 किलो का कार्टन 2300 रुपये प्रति किलो तक खरीदा जा रहा है। इसके अलावा इटली के सेब का नौ किलो का कार्टन 1800 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदा जा रहा है। अमेरिका का वाशिंगटन का सेब पहले से ही प्रदेश के सेब बागवानों के लिए चुनौती बना हुआ है। अब वाशिंगटन के सेब के बीच दोनों देशों के सेब को जगह-जगह देखा जा रहा है। दिल्ली, चंडीगढ़ से लेकर देश भर की मंडियों में यह विदेशी सेब अटा पड़ा है। यही नहीं, अब तो इसे हिमाचल के सेब बहुल जिला शिमला के बाजारों में खूब देखा जाने लगा है।
तुर्किये और इटली के सेब की खूब मांग, 300 रुपये किलो तक बेच रहे माल रोड शिमला की एक दुकान में फलों का विक्रय करने वाले साहिल शर्मा ने बताया कि उनके पास तुर्किये और इटली के सेब की खूब मांग है। आजकल वाशिंगटन एप्पल की तरह दोनों देशों के रेड डिलिशियस सेब की खूब मांग है। विदेशों से आ रहा यह ताजा सेब 300 रुपये प्रति किलो तक बेचा जा रहा है। हिमाचल के सेब भंडारण करने को सीए स्टोर पर्याप्त मात्रा में होते तो यह स्थिति नहीं होती प्रदेश फूल, फल एवं सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष बागवान हरीश चौहान ने कहा कि शिमला जिला सेब उत्पादन के लिए जाना जाता है। यहां विदेशों का सेब इस तरह से बिकना स्थानीय सेब उत्पादकों के लिए चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि हिमाचल के सेब का भंडारण करने के लिए अगर सीए स्टोर पर्याप्त मात्रा में होते तो यह स्थिति नहीं होती। यहां 12 महीने हिमाचल का ही सेब मिलना चाहिए। फल विक्रेताओं को अगर हिमाचल का गुणवत्तापूर्ण सेब उपलब्ध हो पाता तो वे भी विदेशी सेब बेचने के लिए विवश न होते।