880 मेगावाट
हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 880 मेगावाट का महत्वाकांक्षी अल्ट्रामेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्क (यूएमआरईईपी) पर्यावरण मंत्रालय की आपत्तियों में फंस गया है। जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति के काजा में 5,500 करोड़ रुपये की लागत से इस पार्क का निर्माण प्रस्तावित है। प्रोजेक्ट साइट का दोगुना वन क्षेत्र विकसित करने की शर्त से सोलर पार्क अधर में फंस गया है। वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट का काम एसजेवीएनएल को सौंपा है। 1350 हेक्टेयर भूमि पर सोलर पार्क को विकसित किया जाना है। पर्यावरण मंत्रालय ने शर्त लगाई है कि सोलर पार्क को तैयार करने के साथ 2700 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधे रोपने होंंगे।
लाहौल-स्पीति को शीत मरुस्थल के नाम से जाना जाता है। यहां पेड़ों की संख्या नाममात्र है। ऐसे में यहां पौधरोपण करना मुमकिन नहीं है। किसी अन्य स्थान पर इतनी अधिक भूमि उपलब्ध होना भी आसान नहीं है। ऐसे में ऊर्जा मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय को पत्र भेजकर इस शर्त में छूट देने की मांग की थी। पर्यावरण मंत्रालय ने छूट देने से इंकार कर दिया है। इस कारण 880 मेगावाट का सोलर पार्क फाइलों तक ही सीमित रह गया है। उधर, लाहौल-स्पीति के काजा में 880 मेगावाट के प्रस्तावित इस सोलर ऊर्जा पार्क की डीपीआर तैयार कर ली गई है।
देश का यह पहला सबसे बड़ा सोलर ऊर्जा पार्क प्रस्तावित है। इसके तहत काजा में सात जगह सोलर प्लांट बनाए जाने हैं। जिनमें 100 से 200 मेगावाट तक बिजली तैयार होगी। काजा से उत्पन्न होने वाली बिजली बाहर आपूर्ति करने के लिए वांगतू सब स्टेशन तक 197.14 किलोमीटर लंबी ट्रांसमिशन लाइन बिछाई जानी है। सेंट्रल ट्रांसमिशन यूटिलिटी (सीटीयू) से 1,100 करोड़ की लागत से इस लाइन को बिछाने का कार्य करवाने की योजना है। केंद्र सरकार ने 31 दिसंबर 2025 तक इस परियोजना का कार्य पूरा कर बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है। उत्पादन शुरू होने पर जनजातीय जिले में भारी बर्फबारी में भी बिजली संकट होने का दावा किया गया है।