कांगड़ा के टी-गार्डन
सीएसआइआर-आईएचबीटी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों की अथक मेहनत का ही नतीजा है कि यहां की मैदानी जमीन ट्यूलिप जैसे पहाड़ी प्रजाति के फूलों को खुद में समाहित करके अंकुरित करने लग गई है। नतीजतन अब लोग कश्मीर के ट्यूलिप गार्डन का एहसास टी-गार्डन सिटी पालमपुर में भी कर पा रहे हैं। यहां वैज्ञानिकों ने 11 किस्मों के करीब 50 हजार ट्यूलिप तैयार कर दिये हैं, जो कि सबके आकर्षण का केंद्र बने हुये हैं। अभी हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी इसी ट्यूलिप गार्डन का भ्रमण करते हुये नजर आये थे. उन्होंने बाकायदा यहां सोलो तस्वीरें भी खिंचवाई थीं।
सी.एस.आई.आर- हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर में ट्यूलिप गार्डन की सुंदरता को निहारने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी भी पहुंचने लगे हैं। कश्मीर के बाद हिमाचल प्रदेश में अगर कहीं ट्यूलिप गार्डन बनकर तैयार हुआ है तो वो जगह कोई और नहीं बल्कि पालमपुर है। ये गार्डन देश का दूसरा ट्यूलिप गार्डन है जो कि हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा विकसित किया गया है। यह ट्यूलिप गार्डन पूरी तरह से स्वदेशी ट्यूलिप पौध से विकसित किया गया है। लाहौल-स्पीति में भी इसकी पौध तैयार की जा रही है।
फिलहाल ट्यूलिप की प्रजाति का जिक्र करें तो ये हौलैंड में बहुतायत में पाया जाता है, मगर इसका इतिहास हमें बताता है कि साल 1554 में ये पौधा टर्की से पहली मर्तबा अस्तित्व में आया। वहां से इसे 1554 ई0 में ऑस्ट्रिया फिर 1571 ई0 में हॉलैंड और यहां से फिर 1577 ई0 में इसे इग्लैंड ले जाया गया। बावजूद इसके गेसनर नाम के इतिहासकार ने पहली बार इस पौधे का उल्लेख 1559 ई0 में अपने लेखों और चित्रों में किया था। उसके पश्चात यूरोप भर में इस पौधे का जज्बा लगातार बढ़ता गया और आज ये कई देशों की शोभा बढ़ा रहा है।
दरअसल, इस पुष्प का गहरा रंग और सुंदर आकार लोगों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। यह अपनी समरूपता के लिए दुनियाभर में मशहूर है। इस फूल का गहरा रंग और सुंदर आकार मन को मोह लेता है। इसकी कई खूबसूरत प्रजातियां भी हैं। सीएसआईआर आईएचबीटी संस्थान पालमपुर में 11 किस्मों के करीब 50 हजार ट्यूलिप पौधे जिन्हें कि बल्ब भी कहा जाता है, तैयार किये हैं। पिछले साल यहां पर लगभग 28 हजार पौधे लगाए थे लेकिन इस साल यहां पर इनकी संख्या बढ़ाकर 50 हजार के करीब कर दी गई है जो आजकल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
सी.एस.आई.आर- हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ भव्य भार्गव की मानें तो देश में ट्यूलिप पौधे का विदेशों से ही आयात होता है। उन्होंने कहा कि यहां ट्यूलिप बल्ब को उगाने या सर्वाइव करवाने में उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। फिर भी संस्थान ने प्रदेश के लौहाल स्पीति में पिछले 5 सालों में शोध कर ट्यूलिप के बल्ब को यहां की जलवायु में ढालकर तैयार करने में सफलता हासिल की है। ट्यूलिप के फूलों की अब काफी मांग बढ़ गई है। अगर किसान इनको अपने खेतों में लगाता है तो उनकी आमदनी में काफी बढ़ौतरी हो सकती है।
डॉ भार्गव ने कहा कि इस बार जून माह में लेह में भी टयूलिप गार्डन को शुरू कर दिया जाएगा और वहां पर डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के साथ मिलकर कार्य किया जा रहा है। संस्थान देश में ऐसा विकसित मॉडल तैयार करना चाहता है जिससे बाहर के देशों पर ट्यूलिप के लिए निर्भरता कम की जाए। उन्होंने कहा कि संस्थान की न्यू दिल्ली मुंसिपल कॉरपोरेशन के साथ ट्यूलिप बल्ब को मल्टीप्लाई करने के लिए चल चर्चा चल रही है। वहीं, टयूलिप गार्डन देखने आए हुए पर्यटकों ने कहा कि उन्हें यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है। पहले टयूलिप गार्डन को देखने के लिए श्रीनगर जाना पड़ता था। संस्थान के द्वारा बहुत सरहनीय कार्य किया गया है।